कश्ती मेरी और कितना मझधार में ले जाओगे
मैं डूब गया तो तुम भी कहाँ बच पाओगे
मैं कतरा ही सही मेरा कुछ वज़ूद तो है
मैं ना हूँ तो समंदर को तरस जाओगे
रात अभी बाकी है घूम लो आवारा
सुबह तो तुम लौट के घर ही आओगे
ढूँढोगे जब भी मुझे, दिल की आँखों से
हर तरफ मैं दिखूँगा, जिधर नज़र घुमाओगे
मैं आज हूँ थाम लो मुझे बाहों में
गुज़र गया कल तो बहुत पछताओगे
जलेगा उम्मींद-ए-चिरागाँ मेरी साँसो तक
हर लौ में दिखूँगा, जो शमा जलाओगे
G059
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