ना तुम्हारा दिन निकलेगा ना हमारी रात होगी
ना जिंदगी में अब हमारे कभी जुम्म-ए-रात होगी
शाम-ए-सफ़र में जब भी तन्हाँ होंगे हम
ख्यालों ही ख्यालों में अब हमारी बात होगी
किस-किस को सुनाएंगे हम अपना ये फ़साना
अज़नबी चहरों से रोज मुलाकात होगी
ना फिर मिलेंगे हम ना ही कभी बात करे
ज़िन्दगी तो हम जियेंगे पर खैरात होगी
वस्ले-ख़ौफ़ जेहन में कुछ इस कदर हावी होगा
सिसकियाँ तो होगी पर ना आवाज होगी
हसरतों पे किसका जोर वो तो उठेगी ही
पर ना आँख नम होंगी ना बरसात होगी
सितम कितने भी कर ले ये ज़माना हम पे
क़भी तो इस जहाँ में कयामत की रात होगी
दूर कितने भी हो हम इक दूजे से मगर
मुहब्बत दरमियां हमारे बेहिसाब होगी
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