ग़ज़ल/नज़्म
ज़िन्दगी आराम का सामान
ज़िन्दगी आराम का सामान बन के रह गयीआरज़ू इक घर की थी मकान बन के रह गयी उड़ते थे खुले आसमां जब पँख पखेरू ना थे पँख आए तो पिंजरे की उड़ान बन के रह गयी करनी थी अता नमाज़ हर शक्श के वास्ते पढ़ी नमाज़ तो नमाज़ अज़ान बन के रह गयी इक वो भी था ज़माना जब रास्ते कम न थेआज बंद गली का मकान बन के रह गयी कोशिशें तो बहुत की कि दुनियादारी सीख लें ज़िन्दगी है की हमारी नादान बन के रह गयी सपने भी टूटे मगर हमने कभी सौदा ना कियाआज टूटे सपनो की दूकान बन के रह गयी सुने थे किस्से हमने बहुत तेरी हरजाई केतू तो है कि गूंगे की जुबान बन के रह गयी हौसले बुलंद इतने कि तारे भी तोड़ लाएगें आज बढ़ती उम्र की थकान बन के रह गयी निशानेबाजी इस कदर की आसमां भी भेद दें आज बिना तीर के कमान बन के रह गयी ताकत-ए-मुशताक हममें भी गज़ब कि थीवक़्त ऐसा बदला क़ी बेजान बन के रह गयी कटे हाथ उनके जिन्होंने बनाया ताजमहलमोहब्बत भी इक जुल्म-ए-दास्तान बन के रह गयी जानते थे ऐ ज़िन्दगी हम तुझे अच्छी तरहतूने नज़रें यु पलटी कि अनजान बन के रह गयी ज़िन्दगी हमारी किसी गुलिस्तां से कम ना थीचमन ऐसा उजड़ा की शमशान बन के रह गयी हम भी किसी सियासत के ‘राजा’ हुआ करते थे आज गुज़रे वक़्त के निशान बन के रह गयी
G001
हर आदमी अकेला
हरआदमी अकेला परेशान बहुत हैइस शहर में दोस्त कम अंजान बहुत हैं आदमी को कामिल नहीं इक कतरा सुकूंउसके पास आराम का सामान बहुत है महफिलों में नाचता-फिरता ये आदमीमगर उसके अंदर सुनसान बहुत है नहीं पहचाना ख़ुद को जब आईना देखामगर उसकी लोगो में पहचान बहुत है अपनी ही नजरों में गिरता ये आदमीमगर उसकी ऊंची उड़ान बहुत है आदमी क़ो कामिल नहीं इक टुकड़ा जहाँयूं तो कहने को आसमान बहुत है थका हारा आदमी ये कब तक निभाएगाउसे टूटे रिश्तों कि थकान बहुत है अपने ही धोखा देते हैं जहाँ हर कदमगैरों ने किये हम पर अहसान बहुत हैं दोस्तों ने गर्दिशों में भी साथ ना छोड़ादोस्तों पे हमें अपने गुमान बहुत है जहाँ हर कोई ख़ुद को अपना ख़ुदा मानेऐसे इस शहर में भगवान बहुत हैं किसी कि कब्र पे अपना मका बनातेऐसे भी शहर में हैवान बहुत हैं दर्द जो छोड़ कर मुझे कहीं नहीं जातेऐसे मेरे दिल में मेहमान बहुत हैं गरीबों का लहु से अपनी ज़मीं सिंचेऐसे इस शहर में धनवान बहुत हैं जिसके अंदर का आदमी ही मर जाएअपनी ही रूह से अनजान बहुत हैं खून के रिश्ते भी जहाँ दूरियाँ बन जाएं‘राजा’ ऐसे रिश्तों से परेशान बहुत हैं
G002
सहरा में मीराज़ दिखाकर
सहरा में मिराज दिखाकर मुझे भटकाने वालेतुम्हीं तो थे मेरे रहबर मुझे राह दिखाने वाले यू खुश ना हो तू दुसरो के गुनाह गिनकर तुम्हें भी मिल जाएंगे आईना दिखाने वाले सूरज डूबते ही साया भी साथ छोड़ देता है कल मेरा सूरज निकलेगा मुझे रुलाने वाले गम के अंधेरो मे डूबी वीरान बस्तीओं में कुछ लोग आज भी मिलेंगे दिया जलाने वाले ये सर तेरे दर के सिवा कहीं नहीं झुकता हम नहीं हर दर पे सर अपना झुकाने वाले रब की हर रज़ा को जो अपनी रज़ा समझें सुकून मे जीते हैं अहम अपना मिटाने वाले वक़्त के आगे जो सर अपना झुका देते हैं तूफ़ां में नहीं टूटते दरखत झुक जाने वाले कौन है जो मेरी हस्ती मिटाना चाहता है मिट गए सब जहाँ से हमको मिटाने वाले
G003
जिसका गम है
जिसका गम है बस वही जानेदूसरा और कोई क्या जाने वो ना समझे है ना समझेंगे कभीहम फिर भी लगे उनको समझाने हम थे पागल जिस शक्श के लिए वो तो किसी और के ही थे दीवाने जीना तो हर हाल में है मुझको बहुत से कर्ज अभी हैं चुकाने खताएं कुछ ऐसी हमसे हो गईउम्र भर हम भरेंगे हर्जाने कुछ ही पल थे जो मेरे अपने थे बाकी सब थे तो वो बेगाने करते करते दर्दों का हिसाबबेख्याली में लगे मुस्कुराने अँधेरे सब जहाँ से मिट जाएंगेकुछ दिए प्यार के हैं जलाने
G005
बहुत हैं दुनिया मे
बहुत है दुनियां मे लोग दर्द बढ़ाने वाले हमसे कहां मिलेंगे मरहम लगाने वाले लगाते है लोग रोज दर्दो की नुमाइशहमसे कहां मिलेंगे दर्द छुपाने वाले मतलब के ये लोग हैं चार दिन के साथी हमसे कहां मिलेंगे उम्र भर निभाने वाले मगरमच्छी आंसू ये इतने बहाएंगेसैलाब ले आएंगे कश्ती डुबाने वाले खुशियाँ छीन लेंगे झूठे सपने बेचकर नीलाम कर देंगे अपना दिखाने वाले दौलत की इंतहा भूख और बेरहम लोग कफन तक बेच डालेंगे क़ब्र बनाने वाले बढ़ा देंगे दर्द तुम्हारा माज़ी कुरेदकरकभी ना बख्शेंगे कमबख्त ज़माने वाले पत्थर की दुनियां ‘राजा’ शीशे का तेरा दिल हर मोड़ पे मिलेंगे पत्थर चलाने वाले
*माज़ी- बीता हुआ काल , अतीत समय
G008
आज यहाँ हर शख़्स
आज यहां हर शख़्श शराबी हो जाएगाउसका हर अन्दाज़ नवाबी हो जाएगा पढ़ लो अपना प्यार यार की आँखों मेवरना उसका प्यार किताबी हो जाएगा आज ये बरसात भीगो दे तन-मन कोभीगा मेरा यार शबाबी हो जाएगा भर लो अपना यार प्यार से बाहों मेभूला उसका प्यार जवाबी हो जाएगा छू लो अपना यार प्यार की नज़रों सेचेहरा वो मेहताब गुलाबी हो जाएगा
*शबाबी- यौवन काल जवानी
*महताब- चाँद
G033
फिर वही मुहब्बत
फिर वही मुहब्बत फिर वही तरानाये आधी हकीकत ये आधा फ़साना अकेले मिलने के बहाने बनानाऔर महफिल मे हमसे नजरें चुराना दांतो मे अपने पल्लु दबाकरइशारों-इशारों मे हमको बुलाना बातों ही बातों मे उनका अचानकउंगलियों मे अपने पल्लु घूमाना आईने मे ख़ुद से नज़रें मिलाकरशर्मा से अपनी नज़रें झुकाना ख़्वाबों कि इक महफ़िल सजाकरबेख्याली मे उनका गुनगुनाना मचलती उमंगों को अपनी दबाकरआँखो मे आँसू भर मुस्कुराना मुहब्बत में गिरना गिर के सम्भलनाज़माने का काम है ठोकर लगाना बातों ही बातों में उनका रूठ जानाअच्छा लगता है उन्हें मेरा मनाना जवानी का आलम ये सदियों पुरानासुनाता रहा है जिसे ये जमाना ये तेरी कहानी ये मेरी कहानीबहुत पुराना है इनका याराना फिर वही मुहब्बत वही तरानाये आधी हकीकत आधा फ़साना
G038
अभी भी हममे
अभी हममें हिम्मत हमारी बाकी हैकसक बाकी है बेक़रारी बाकी है उम्र दराज़ हम हो गए तो क्या हुआअभी जवां दिलों में चिंगारी बाकी है जिंदगी की जंग अभी हम हारे नहींअभी भी गरम सांसे हमारी बाकी है दो चार घूंट ज़िंदगी के पिए तो क्याबोतल मे अब सारी कि सारी बाकी है सब नतीजे जिंदगी तेरे निकले नहींअभी भी अपनी उम्मीदवारी बाकी है मौसम फ़िज़ा का कभी तो बदलेगाअभी भी पहाडों पे बर्फबारी बाकी है बहकाने की कौशिश न कर ऐ ज़िंदगीअभी भी हममें समझदारी बाकी है हर बेरुख़ी का हिसाब तुझसे लेना हैअभी भी तेरी जवाबदारी बाकी है क्यों धोख़े में आये हम तेरे बार-बारअभी भी हममें होशयारी बाकी है कब तक छूटेगा सुर कभी तो लगेगाअभी भी हममें संगीतकारी बाकी हैं हर शाही सफ़ा ज़िंदगी तुझे सुनाना हैअभी अपना राग दरबारी बाकी है बहुत कर्ज जिंदगी तेरे चुकता किएअभी भी थोड़ी देनदारी बाकी है मुफलिसी में जिए मगर माँगा नहींअभी भी हमने खुद्दारी बाकी है दर्द दिया तो तुने तू दवा भी देगीअभी भी तेरी वफादारी बाकी है हर बात तो मानी है तुने ऐ जिंदगीअभी तेरी फरमा-गुज़ारी बाकी है सांचे मे डाल सकता हूं तुझको आज भीअभी भी हममें हस्तकारी बाकी है हुक्म अपना अभी भी तुझपे चलता हैअभी भी ‘राजा’ सरदारी बाकी है
*पर्दानशी- ढंकना
*फौजदारी- मार-पीट हत्या आदि से संबंध रखनेवाला
*मुफ़लिसी- ग़रीबी निर्धनता
G047
आँखों में सेहरा
आँखों में सेहरा लिए समंदर ढूँढते हैंहौसले हमारे देखिए बवंडर ढूँढते हैं लड़ जाये जो तूफ़ानों से सीना तानेअपने अन्दर वो सिकन्दर ढूँढते हैं हमसे आँख मिलाने का जो हौसला रखेज़माने में ऐसा कोई धुरन्धर ढूँढते है जिसे ना ढूँढ पाया कोई आज तकज़िद्द हमारी है कि मुक़द्दर ढूँढते है जंगल में तो जंगल का ही कानून चलेगातुम रहो यहां सलामत हम शहर ढूँढते हैं हम चले पहाड़ों पे कुछ छुट्टियाँ मनानेतुम तपो जून में हम सितम्बर ढूँढते हैं इसे मै क्या समझूँ, दोस्ती या दुश्मनीदुआ होंठों पे है और ख़न्जर ढूँढते हैं गुज़री है ताउम्र बेमतलब की बातों मेंजन्नत संवारनी है कलन्दर ढूँढते हैं तुम्हें भी मिल ही जाएगा तुम्हारा ख़ुदासब को मिलेगा जो रब अन्दर ढूँढते हैं
*कलन्दर- सूफ़ी संत
G049
ज़िन्दगी मेरी रब की
जिंदगी मेरी रब की इनायत हो गयीउल्फत मेरी उनकी इबादत हो गयी देखते हि आँचल लपेटना उंगलियों पेये अदा भी उनकी कयामत हो गयी मर मिटे हम उनकी इन अदाओं पेप्यार दिल की शोख़ हसरत हो गयी क्या खता हमसे हुई की उनके हो गएहर खता मदहोश उल्फत हो गयी तरसे हो बून्द उल्फत मिल जाये दरियाया रब कैसी तेरी ये कवायत हो गयी दास्तां सुनते ही मेरी वो रो दियेखुश रहूँ मैं उनकी हिदायत हो गयी क्या सुनायें किस्से हम दीवानगी केहर तरफ दिल की सियासत हो गयी चाँद बन ज़िन्दगी मेरी वो रोशन किएचाँदनी दिल की रिवायत हो गयी
*वस्ल-ए-इनायत- मिलने की कृपा
*रुबाइयत- शबद /कुरान के दोहे
*इनायत- कृपा
*हिदायत- अनुदेश
*हिमायत- साहस
*रिवायत- परंपरा
*तीजारत- व्यापार
*तिलावत- पढ़ना किसी धर्मग्रंथ को पढ़ना
*जियारत- किसी कब्र के दर्शनार्थ किया जाने वाला सफ़र
G050
ना कोई आँख
ना कोई आँख नम हो ना वफा कम होना कभी किसी से दूर उसका सनम हो ऐसा इस दुनियाँ को बना दे मेरे मौला जहाँ कभी किसी को ना कोई गम हो जमीन आसमां दूर मिल रहें हैं कहीं आँखों को कभी भी ना ऐसा भरम हो हर किसी में सबको तेरी सूरत दिखे हर शख़्स पे तेरा ही रहमो-करम हो हमारे घरों में न हो हिन्दू या मुस्लिमहर घर में सिर्फ़ इंसाँ का ही जन्म हो मज़हबी जहालत खत्म कर जहां सेइंसानियत ही जहां में सबका धर्म हो
G052
काश मैं भी
काश! मैं भी ऐसा होता कह देता मन जैसा होता इतनी हिम्मत मुझमें होतीमैं भी तेरे जैसा होता मुख अपना भी उज्ज्वल होतागर मन शीशे जैसा होता पल-पल ये ना सोचा होताऐसा होता तो कैसा होता खुश रहते सब कोई ना रोता गर ना पैसा-पैसा होता जो भी होता उल्टा होताकुछ तो मेरे जैसा होता ये जग सारा मेरा होतागर ना ऐसा वैसा होता ऐसा-वैसा कुछ ना होताजैसा होना वैसा होता तु क्यों चिंता करे हैं ‘राजा’जो रब चाहे वैसा होता
G053
अपने चेहरे को
अपने चेहरे को गर दिल का आईना बनाइए तो लोगों के पत्थरों से बचकर दिखाइए दर्द जितने भी हों दिल में मुस्कुराते रहिएगर रो पड़े तो बिखरने से बचकर दिखाइए किसी को बदलने की कोशिश ना कर नासमझ खुद की फितरत तो पहले बदल कर दिखाइए ज़ख्म जितने भी मिले तुमको छुपाए रखिएज़ख्मो की ना सरे-आम नुमाइश लगाइए दर्द की नुमाइश मे सुकूं मत तालाश कर दर्द को लम्हा-लम्हा पी कर दिखाइए
*नासूर- ऐसा घाव जिसमें से बराबर मवाद निकलता हो, नाड़ी व्रण
*नुमाइश- दिखावट, प्रदर्शन, प्रदर्शनी
G058
कश्ती मेरी कितना
किश्ती मेरी और कितना मझधार में ले जाओगे मैंडूब गया तो तुम भी कहाँ बच पाओगे मैं कतरा ही सही मेरा कुछ वज़ूद तो हैमैं ना हूं तो समंदर को तरस जाओगे रात अभी बाकी हैं घूम लो आवारासुबह तो तुम लोट के घर अपने ही आओगे ढूँढोगे जब भी मुझे, दिल की नज़रों सेहर तरफ दिखूंगा, जिधर नज़र घुमाओगे मैं आज हूँ थाम लो मुझे बाहों में …गुज़र गया कल तो ढूढंते रह जाओगे जलेगा उम्मींद-ए-चिराग मेरे लहू सेहर लो में दिखूँगा, जो शमा जलाओगे
G059
यूँ मेरा कत्ल
यू मेरा कत्ल करवाने की ज़रूरत क्या थीइतनी ज़हमत उठाने की ज़रूरत क्या थी हम ख़ुद ही सर अपना सूली पे रख देतेइल्जाम सर अपने लगाने की ज़रूरत क्या थी कत्ल तो हम इन निगाहों से भी हो जातेफिर ये खंजर उठाने की जरूरत क्या थी जानते थे तुम की हम मोम का दिल रखते हैबस हाथ मिलाते दबाने की ज़रूरत क्या थी हम भी किनारों पे डूबने का हुनर रखते हैंकश्ती मझधार ले जाने की ज़रूरत क्या थी मोहब्बत-ए-इल्ज़ाम तुम्हारा हमें कबूल था फतवा-ए-मौत सुनाने की ज़रूरत क्या थी काश! मेरा कातिल ही मेरा मुन्सिब होता हमें ये ज़ख्म छुपाने की ज़रूरत क्या थी सुने थे हमने किस्से बहुत तेरी हरजाई केसब हम पर आज़माने की ज़रूरत क्या थी गर न था मैं कभी तुम्हारे ख्वाबों ख़्यालों मेइश्क हमसे जताने की ज़रूरत क्या थी मिलती गर हमें तुम्हारी जुल्फों कि छाँव हमें बेवक्त मुरझाने की ज़रूरत क्या थी बढ़ाने ही थे गर अंधेरे ही मेरी ज़िन्दगी मेंचिराग़-ए-उम्मीद जलाने की ज़रूरत क्या थी दो कदम भी न साथ चल पाए तुम जिन रास्तों पेहमें वो रास्ता दिखाने की ज़रूरत क्या थी समझा नहीं सकते जब तुम हमें अपनी दलीलों सेहमे बार-बार समझाने की ज़रूरत क्या थी मिलता गर साथ तुम्हारा हमे तन्हाइयों मेंहमें ये महफ़िल सजाने की ज़रूरत क्या थी
G062
नशा रूहानी
नशा रूहानी चाहिए
तो जाम रूहानी पी
जो होगा उसकी रजा
तू मस्त जवानी जी…
चिंता करके कल कि
काहे गवाएं आज
पल-पल का तू ले मज़ा
तू हर शाम सुहानी जी…
देख बेगाना प्याला
अपना भुला दिया
सब मन कि भटकन है
तू अपनी कहानी जी…
G076
बहुत गुनाह किए हमने
बहुत गुनाह किए हमनेबहुत फ़साने जिए हमने ज़िन्दगी यूँ ही कटी बहुत आँसू पिए हमने बेशुमार कीमत चुकायी हैदर्द गहरे लिए हमने कौन किसका साथी है ज़ख़्म ख़ुद ही सिए हमने किसने दिया कितना दर्दकहाँ हिसाब किए हमने कुछ क़र्ज़ चुकाने के लिए सपने सब बेच दिए हमने तुम्हीं क़ातिल तुम्हीं मुन्सिफ़फैसले सब सर लिए हमने अधूरे ख्वाब कहाँ पुरे हुए सूली सब भेट किए हमने आत्म मंथन के जहर के घड़े सब पी लिए हमने कुछ रिश्ते बचाने के लिएगुनाह सब सर लिए हमने आखिरी कदम साथ दे दो तन्हा सफर हि किये हमने
G010
कोई बस्ती तो होगी
कोई बस्ती तो होगी जहाँ लोग दीवाने होंगेखुशबुएँ फ़िज़ा में होगी और सब मस्ताने होंगे ना वस्ल-ए-खौफ़ होगा ना कोई दूरिया होंगी रोज दीदार-ए-यार होगा रोज अफ़साने होंगे ना कोई ख़ुदी में होगा ना याद उनकी आयेगीना दर्द दबाने होंगे ना आंसू बहाने होंगे भँवरे गुलो पे होंगे और वो हमारे पहलू मेंशाँम ढले घर जाने के ना कोई बहाने होंगे ना दर्दे ज़ँफा होंगी ना कोई करार होगा कुछ ऐसा करना होगा सब दर्द भुलाने होंगे दीवानो की ऐसी बस्ती किसी दिन तो बसेगीअंज़ानो की दुनिया में कुछ दोस्त बनाने होंगे
G012
कुछ ही लोग होते हैं
कुछ ही लोग होते है अपने दिल के नवाबबाकी सब तो करते हैं दुनिया का हिसाब दोस्ती में जो अपने ख़ुदा को भुला देवो ही दोस्ती के काबिल होता है जनाब चुप रहते है हम जहाँ दोस्ती ना हो गैरों को हम देते नही कोई जवाब परदा नहीं होता कोई दोस्तो के बीचना होता है किसी चेहरे पे कोई नक़ाब रूठने-मानाने की दरकार नहीं होतीदोस्ती में विश्वास होता है बेहिसाब दोस्ती ओहदे की मोहताज नहीं होतीना इसमे कोई रंक है ना कोई नवाब जिससे बात करने को सोचना ना हो उस दोस्त को है मेरा दिल से आदाब कहता है दोस्त जिसे ‘राजा’ इक बारउसके आगे फीका सारे जहां का शबाब
G013
कोई मुझको मेरी खता
कोई मुझको मेरी खता तो बता दो फिर तुम मुझे जो भी चाहे सजा दो हर इलज़ाम तुम्हारा सर आँखों पे मेरे क्यूँ ना तुम मुझे बेड़िया पहना दो शिकवा ना करेंगे हम तुमसे कभी भी चाहे क्यूँ ना तुम मेरी हस्ती मिटा दो ख़ुदा माफ करे नादानियाँ तुम्हारीचाहे कीलें ठोक मुझको सूली चढ़ा दो प्यार में कान्हा के मैं खुल के नाचूंगी चाहे तुम मुझे प्याला जहर का पीला दो मोहब्बत गर गुनाह है ये सोचते हो तुम तो मुझको दीवारों में जिन्दा चिनवा दो ना छोड़ेंगे हम कभी अपनी दीवानगीक्यूँ ना तुम मुझे पत्थरों से मरवा दो चिनाब तो हम पार करके ही रहेंगे क्यूँ ना तुम मुझे कच्चा घड़ा ही ला दो
G014
मेरे शहर के लोग
क्यूँ मुहब्बत में हक़ीक़त ढूढ़ते है लोग.कितने नादान है यारों मेरे शहर के लोग हर वक्त जीने के बहाने बेमाने लगते है क्यूँ सागर में नही डूबते मेरे शहर के लोग रात भर करवट बदलते ये थके हारे से लोगइक लम्हा सुकूँ ढूढ़ते मेरे शहर के लोग प्यासे इतने की इनकी प्यास कभी बुझती नहीं रोज़ आसमां में बादल ढूढ़ते मेरे शहर के लोग यारा की ज़ुल्फो-ए-साए में ये ज़िन्दगी गुज़ार दोक्यूँ घर पत्थरों का है ढूंढ़ते मेरे शहर के लोग मुहब्बत की दुनिया है इबादत की दुनियाँ क्यूँ दरो यार नहीं चूमते मेरे शहर के लोग मुहब्बत इक नशा है तो नशा ही सहीक्यूँ नशे में नही झूमते मेरे शहर के लोग खाली प्याला हाथ में और दिल भरा हुआ राज-ए-दिल कभी नहीं खोलते मेरे शहर के लोग रिश्तो क़ो जोड़ने की नाकाम कोशिश मेंलम्हा-लम्हा है टूटते मेरे शहर के लोग. अपनो को देखते ही ये नज़रें चुराते ये लोगहाले-दिल तक नहीं पूछते मेरे शहर के लोग मुफ़्लिसी मे अपना साया भी साथ छोड़ देता है दौलत वालों को है पूजते मेरे शहर के लोग गिर जाने वालों को यहां कोई नहीं उठाताउन्हें रोन्द कर रास्ता ढूढ़ते मेरे शहर के लोग दूसरों का महल देख ‘राजा’ झूठी शान मेंक्यूँ घर अपना है फूंकते मेरे शहर के लोग हर कोई दौड़ रहा है मंजिल की तलाश में थोड़ा ठहर क्यों नहीं जाते मेरे शहर के लोग तन्हा इतने कि अपनी ही परछाई साथ ना चले तन्हा ही जिंदगी से झूझते मेरे शहर के लोग
G011
ये भी क्या बात हुई
ये भी क्या बात हुई की वो बात नहीं करतेपहले जैसी अब वो मुलाक़ात नहीं करते ये उनकी बेरूखी बेबसी या बेवफाई है ना जाने क्या बात है क्यूँ बात नहीं करते बेबसी में कभी बात करनी पड़ भी जाएबस उतनी ही बात करते हैं हर बात नहीं करते महफ़िल में गर कभी उनसे सामना हो जाएनज़रो से अब वो प्यार कि बरसात नहीं करते तन्हाई में कभी वो सामने से गुज़र जाएंहिज़ाब उठाकर अब हमें हैरात नही करते पहले तो बात-बात पे वो तकरार करते थेअब खामोश रहते है सवालात नहीं करते छोटी सी जिंदगी हैं मोहब्बत में गुज़ार दोइस ज़िन्दगी को यू ही बर्बाद नहीं करते ना कद्र हो ‘राजा’ की दिल से जहाँ पेवहा हम बर्बाद अपने जज्बात नहीं करते
G004
बेखयाली में बरहा
बेख्याली में बरहा वो ये भूल जाते हैंनशेमन हो शबाब तो रिंदे लूट जाते है मोहँब्बत नहीं आसान ये तो वो शै हैगर न मिले तो सरफ़राज भी टूट जाते हैं जब भी होता है जिक्र तेरी आँशनाई काख्याँलो में तेरे हम अकसर डूब जाते हैं मनाने से मेरे जो लज्ज़त आती है आपको तभी बात-बात पे आप हमसे रूठ जाते हैं न अंगडाई लो न देखो तिरछी नज़र सेअच्छे-अच्छो के ईमान पल मे टूट जाते है मुद्दतो बाद नज़रे करमगर हुई उनकीरूकता नहीं सैलाब ये आँसू फूट जाते हैं बहुत नकाब पहने हैं लोगो ने यहां पर अपने ही चेहरे की पहचान भूल जाते हैं कौन कब बदल जाए किसको पता है यारों सदियों पुराने रिश्ते भी पल मे टूट जाते हैं भीड बहुत है रास्तो में सम्भलकर ‘राजा’कसकर पकडे हाथ भी अक्सर छूट जाते हैं
G006
क्यूँ तुम मुझमें
क्यों तुम मुझमें अपना ख़ुदा ढूढ़ते होआप भी न जाने ये क्या ढूढ़ते हो मुझको तो अपनी ही खबर नहीं आतीऔर तुम मुझमें खबर-ए-जहाँ ढूंढते हो रात भर भटका हूं बेघर आवाराऔर तुम मुझमे औरो का मकां ढूढ़ते हो भटके हो सारी दुनियां मुझे ढूढ़ने मेदेखा नहीं बगल मे और जहाँ ढूढ़ते हो धोखे मे रखा तुमने उम्र भर सभी कोइस मोड़ पे कौन सी वफ़ा ढूढ़ते हो फतेह करली तुमने मंज़िले जहाँ कीअब कौन से सपनो का मकां ढूढ़ते हो ना कद्र की तुमने वक़्त की कभी भीअब कौन सा सुहाना समाँ ढूढ़ते हो उम्र सारी गुज़री अपने ही रंजो-गम मेंअब कौन सा सुकूं का लम्हाँ ढूढ़ते हो चुप हूँ मैं आजकल कोई बात नहीं करतातुम मुझमे अपनी ही जुबाँ ढूढ़ते हो भुला दिये मैंने सब गुनाह तुम्हारें तुम मुझमे मेरी ही खता ढूढ़ते हो ढूंढ सको तो ख़ुद को ढूंढ के तुम दिखा दोरब को ना जाने तुम कहाँ-कहाँ ढूढ़ते हो रब है तुम्हारे अंदर इक नजर तो डालोक्यों मंदिर मस्जिद हर दुकां ढूढ़ते हो
G007
Video
ना ज़फा में तड़पे
न ज़फा में तड़पे न वफ़ा में मुस्कुराएऐसी भी ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी कहलाए मोहब्बत की बारिश में जो भीगी न होऐसी भी ज़िन्दगी अधुरी ही रह जाए कभी बाग़-बाग़ हंसना कभी दरिया रोनाये ही निशानियां तो मोहब्बत कहलाए कभी मिलने की तड़प कभी दुनिया का डर ये भी ना छूट पाए वो भी ना छूट पाए मोहब्बत के मारो पे सितम तो यही है वो मिलते तो है पर कभी मिल ना पाए मोहब्बत-मोहब्बत, मोहब्बत-मोहब्बतहम ही नहीं समझे तो कैसे समझाए
G015
कुछ गम नहीं
कुछ गम नहीं जो मौत गले लगा लेगर इक घड़ी भी तू अपना बना ले जल सकता हूं जिंदा भी चिता पेगर तू मेरी राख मांग में सजा ले दफ़्न हो जाऊं उफ़ तक न निकलेगी गर तू मेरी कब्र आंगन में बना ले रात भर दीऐ की लौ पे तप सकता हूँगर तू काजल बना आंखों में बसा ले दोनों जहाँ बदनसीबी अपने नाम लिख लूगर तू मौर पंख बन मुझे लेंखनी बना ले ‘राजा’ से रंक बनने में भी रंज नही गर ये रंक तुझको भिक्षा में पा ले
G017
हमने इक शाम
हमने इक शाम सुर्ख फूलों से सजायी है और तुमने ना आने की कसम खायी है दुआ होगी कबूल मेरी ये जानता हूँ मैं हमने इक शमा तेरे दर पे जलायी है जलेगा उम्मीदें चिराग मेरी सांसों तक हमने ये शर्त आँधियों से लगाई है बुतपरस्ती का इलज़ाम लगाते है लोगहमने तेरी मूरत इस दिल में बसायी है समुन्दर कई पीयें पर मन प्यासा… ही रहाहमने ये प्यास अंगारों संग बुझायी है जाते हुए उस दिन तेरा मुड़ के देखनातूने इक उम्मीद इस दिल मैं जगायी है ये मेरा दिल हैं या कोई बंद तहखना हमने तेरी हर बात दिल में छुपाई है तू मेरा दोस्त है हमदर्द है या हमसाया हमने इस दिल में तेरी हर जगह बनायी है
G018
तेरे कदमों में
तेरे कदमो में मेरा सर होगाकहाँ ऐसा मेरा मुक्द्दर होगा तू तसस्वुर है मेरे ख्यालों काक्या तेरा साथ कभी मयस्सर होगा भटकता हूँ रात भर यू ही आवारा कब जुल्फ-ए-साये में घर होगा तेरे साथ चलता हूं बस एहसास गुम हैकब मुझपे खुदा मेरा करमगर हौगा मुंतज़िर हूं दीदार-ए-यार मुदत्तो से कब रूबरू मुझसे मेरा रहबर होगा हाशियों में सिमट के ज़िन्दगी नहीं कटती कब खुला आसमां जमी पर होगा तरसा हूँ बून्द-बून्द तेरी उल्फ़त मैं कब इन बाहों में समुन्दर होगा
G019
चाँद से सूरज से
चाँद से सूरज से जिससे भी यारी रखिएबस इस दिल में थोड़ी जगह हमारी रखिए जानते है हम कि गुल किन क़िताबों में हैं आप तो बस अपनी तफ़्तीश जारी रखिए मुफ़लिसि में जेबें भी फट जाया करती हैं आप इनमें कभी थोडी रेज़गारी तो रखिए समझा नहीं सकते तुम अपनी दलीलों से आप तो बस अपनी तकरीर जारी रखिए आईने के सामने हमसे ही करोगे बातेंइन सुरमई आँखों में तस्वीर हमारी रखिए बेखुदी में क्या मज़ा है तुम भी जान जाओगे आप अपने दिल में थोड़ी बेकरारी रखिए खुशबु साँसों में होंगी महक फिज़ाओ में आप अपने दिल में धड़कन हमारी रखिए सब शिकवे भूला कर तुम्हें गले लगा लेगें इस ईद आप अपने घर इफ़तारी रखिए
G020
हर चमन में
हर चमन में इश्क-ए-गुल कहाँ खिलता हैजहाँ उम्मीद हो इसकी कहाँ मिलता है क्यों डरें हम इश्क़ के अजब इम्तहानों सेबिना तपे आग में सोना कहाँ खिलता है जिसने न माना इश्क़ को अपना ख़ुदा यारोंवो ज़िन्दगी भर यहां खाली हाथ मलता है इश्क़ रहमत है मिलती है रब के करम सेरब तो सिर्फ इश्क वालों को ही मिलता है ठुकराया जिसने भी इश्क़ अपने यार दा वो गीली लकड़ी सा यहां धुआँ-धुआँ बलता है इश्क़ मुकम्मल है गर आग दोनो तरफ लगी होशमा के साथ-साथ परवाना भी जलता है इश्क़ फकीरी है और इश्क़ हि बादशाहीइश्क़-ए-जहाँ में कोई रुतबा नहीं चलता है इश्क वालों पे चढ़ी रहती है हर पल इश्क़-ए-ख़ुमारीउनका पल पल बेख़ुदी में निकलता है होंगे बेशुमार तुम्हारे रहनुमा मगरइश्क़ ‘राजा’ का रब के साथ ही चलता है
G021
आज फिर हमसे
आज फिर हमसे परदादारी हैइतना ज़ुल्म क्या खता हमारी है चाँद कब बादलों से निकलेगाइन्तज़ारे-इन्तहाँ बेकरारी है कुछ यादें दबी है दिल में हमारेयादों संग अपनी गहरी यारी है दूरियां कितना भी हो दरमियांवो ज़िन्दगी आज भी हमारी है मदहोशियाँ फिज़ा में छायी हैनिगाहें उनकी आज आबकारी है हर तरफ छाही है काली घटाएंआज फिर उनकी ज़ुल्फकारी है आज वो हमको गले लगा लेंगेआज उनके यहा ईफ़तारी है महफिल मे कब परदा उठेगाइक-इक लम्हा हम पे भारी है
G022
मुहब्बत में जब
मुहब्बत मे जब रब की ईनायत हो जाती हैजो भी वो बोले वो ही रूबायत हो जाती है तरसे हो इक कतरा और मिल जाए दरियातकदीर की कभी ऐसी कवायत हो जाती है आतिश-ए-इश्क़ सुलग जाए तो बुझता नहीरब से मेरी बरहा शिकायत हो जाती है उन्हे सोच कर मैं ना सोचूं किसी और कोउनकी मुझे ऐसी भी हिदायत हो जाती है तुम न हो तो तुम्हारे अक्स से ही प्यार करुंहमसे भी कभी ऐसी हिमायत हो जाती है
G023
वो ना देखते
वो न देखते न मुस्कुराते न बात करते हैमुहब्बत हमसे करते हैं अजी क्यॉ बात करते हैं भरी महफ़िल मे वो हमसे नज़रे चुराते हैंऔर छुपकर निगाहों से आघात करते हैं ये उनकी बेखुदी है बेरुखी या बेख्याली हैहम खुद से अक्सर ऐसे सवालात करते हैं कभी तन्हाई में जो पूछूं बेरुख़ी का सबबभरके आँखों में बादल बरसात करते हैं उनकी कातिल निगाहों से कितने कत्ल हो गएदेखें वो कब हमसे निगाहें चार करते हैं बहारे बीत गयी कितनी ये आस लगाएशायद इस बहार हमसे मुलाक़ात करते हैं हया बहुत है उनमे ख़ुद ना बोलेंगे कभीदेखें कब हमसे मुहब्बते इज़हार करते हैं या रब कब होगा फैसला मेरी जुदाई कादेखें कब मोला क़यामत की रात करते हैं
G025
जब कभी तेरा नाम
जब कभी तेरा नाम लेता हूँअश्क़ आँखों मे थाम लेता हूँ जब कभी तेरी याद आती है हवाओं से तेरा पयाम लेता हूँ मेरी आवाज़ तुम तक पहुंचे हर घूँट पे तेरा नाम लेता हूँ तुझे याद करके तन्हाइयों मेंमै फिर बेहिसाब जाम लेता हूँ गर कभी पास से गुज़र जाओआँखों-आँखों में सलाम लेता हूँ जब कभी तुमसे बात करनी होदिल से ज़ुबाँ का ही काम लेता हूँ तू मेरा हमसफर है या हमसायामैं तेरा हर एहतराम लेता हूँ कोई ख़ौफ़ ही नहीं है मुझकोतेरा नाम सरेआम लेता हूँ भूल कर भी तुझे भुला न सकूँयह कसम सुबह-शाम लेता हूँ और नहीं बस अब लौट आओसर अपने सब इल्ज़ाम लेता हूँ तू है ख़यालों मे साथ मेरेबिना तेरे कहां साँस लेता हूँ
G026
कौन कहता है
कौन कहता है कि वो प्यार नहीं करतेप्यार तो करते हैं इज़हार नहीं करते जानते हैं हम कि वो भी हमे चाहते हैंबस प्यार जताकर बेक़रार नहीं करते इश्क़ का हमारे जो भी नतीजा निकलेपर्चे इम्तिहानों के हम तैयार नहीं करते बहुत सपने सहेजे हैं हमने ईमान सेहम सपनों का व्यापार नहीं करते इश्क़ मुकम्मल नहीं गर डूबना न आयादरिया इश्क़ का तैरकर पार नहीं करते रोज़ कहते हो तुम कि कल मिलेंगेहम इतना भी इंतजार नहीं करते जानते हैं हम कि अपने ही दगा देते हैं क्यूँ हम अनजानों पे एतबार नहीं करते तुमसे है मुहब्बत मेरा एतबार करोरब कि इनायत है ये इन्कार नहीं करते कितना भी करले सितम ये ज़मानानाम लेकर तुझको शर्मसार नहीं करते अजब सिलसिला है यारो मेरी आशिकी काप्यार तो करते हैं वो सरे बाजार नहीं करते अब तुम इज़हार-ए मोहब्बत कर ही दोआशिक बारिशों का इन्तज़ार नहीं करते हम भी किसी रियासत के ‘राजा’ हो जातेमगर हम बेगुनाहों पर वार नहीं करते
G027
दिल में तेरे
दिल मे तेरे बता क्या हैहमसे हुई खता क्या है क्यूँ बुझे-बुझे से रहते हो बोलो न वजह क्या है दर्द है तो बयां कर दोसोचेंगे हम दवा क्या है आँखों में नमी सी क्यों हैकह भी दो हुआ क्या है तेरे अपने हैं हम गैर नहींदरमियां हमारे छुपा क्या है कहो तो फ़ना हो जाएं हमबोलो तो सजा क्या है दिल मे बेवफाई नहीं हमारेतुमसे सीखी वफ़ा क्या है
G031
उसने रखा है
उसने रखा है जाम फूलों पेआज गुजरेंगी शाम फूलों पे उनकी खुशबु कहां से आयी हैउसने भेजा पयाम फूलों पे क्यों मै मदहोश हुआ जाता हूंउनका छलका है जाम फूलों पे था इंतज़ार जिसका सदियों सेउनका आया सलाम फूलों पे कौन गाता है गुलशने-दिल मेंमस्त भँवरो कि शाम फूलों पे जबसे उनका बुलावा आया है नाचेंगे इश्क-फ़ाम फूलों पे इसलिये मुसकुरा रहा हूं मैहै वफ़ा-की-मुशाम फूलों पे टूट जायेगी आज शर्म-ए-हयाहोगी उल्फ़त तमाम फूलों पे मस्त आँखों में डूबकर उनकीहोगी मदहोश शाम फूलों पे क्यों हमसे दूर है वो अब तकहो ना पीना हराम फूलों पे जब बुलाया है रोक लेना भीकरेंगे ऐहतराम फूलों पे ज़िंदगी उनके साथ गुज़रेगी‘राजा’ आखिर मुकाम फूलों पे
G032
सूरज चाँद सितारे
सूरज, चाँद, सितारे तुम्हारे हो जाएंगेजिस दिन आप हमारे हो जाएंगे ये सब हैं मेरे बचपन के संगी-साथीये आप के भी दुलारे हो जाएंगे जब भी देखोगे इन्हें निगाहों से मेरीसुहाने फ़िज़ा के सब नज़ारे हो जाएंगे गर न समझे दुनियाँ हमारी चाहतहम इक दूसरे के सहारे हो जाएंगे गर खो दिया हमने बेख़ुदी में तुमकोहम आसमां से टूटे सितारे हो जाएंगे अपना बनाया है तो छोड़ के ना जानावरना हम बेघर बेसहारे हो जाएंगे ना निकला करो घर से तुम बेनक़ाबशादी शुदा फिर से कुंवारे हो जाएंगे
G034
हाल-ए-दिल
हाले दिल कुछ उन्हें यूं सुनाया गयाअपने दिल क़ो किताबा बनाया गया इज़हारे-उल्फत कुछ यूं किया हमनेहर सफ़े मे गुलाबा सजाया गया रोशनारा महफ़िल भी यूं की हमनेज़िगर-ए-लहू चिरागा जलाया गया ख़यालों से मेरे जब वो गुज़रा किएबेख्याली मे भी मुस्कुराया गया जब भी मिलने कि जिद्द की दिल ने मेरेबामुश्किल इस दिल को समझाया गया जब क़भी उनकी यादों का आना हुआहर तरफ अपने यारा को पाया गया मनाने से मेरे वो भी मुस्कुराने लगेजब भी रूठे शिद्द्त से मनाया गया दास्तां मेरी सुनते ही वो रो दिएहमसे और न हाल-ए-दिल सुनाया गया बेख़ुदी का मेरे राज वो जान गएजामे-इश्क जब यारा को पिलाया गया यूं किया हमने अपने ही दिल पे सितमदर्द-ए-दिल जब यारा से लगाया गया उसने पूछा ‘राजा’ तेरे दिल मे क्या हैदिल-ए-आईना यारा को दिखाया गया
G036
तुम्हें हमसे प्यार
तुम्हें हमसे प्यार हो न हो हमे तो हैतुम्हें इन्तज़ार हो न हो हमे तो है हम तुम्हारे है तुम्हारे ही रहेंगेतुम्हें ऐतबार हो न हो हमे तो है ये ज़िन्दगी बेज़ार है तुम्हारे बिनातुम्हें इकरार हो न हो हमे तो है तुम्हारा साथ है छाँव कडी धूप मेतुम्हें प्यारा-यार हो न हो हमे तो है करते है हम मुहब्बत तुमसेतुम्हें बेशुमार हो न हो हमे तो है
G037
तू न चाहे मुझे
तू न चाहे मुझे तो क्या गम है
तु है मेरी साँसो में क्या कम है
तू मुझे याद कर तन्हाइ में
क्यूँ तेरी सुर्ख आँखें नम हैं
में रहता हूँ तेरे ख़यालों में
तू जिधर जाए उधर हम हैं
हम तेरे पास है तो साँस हैं
दूर हैं तो तेरा निकलता दम है
बिना तेरे कायनात है अधूरी
तु मेरी ज़िन्दगी तू हमदम है
GO39
तुम मुझे जीने कि
तुम मुझे जीने कि इक वजह दे दो
ज़िन्दगी मैं ये तुम पर लुटा दूंगा
या मरने का दे दो हौसला इक
पल में ही मैं खुद को मिटा दूंगा
गर तेरी नाराज़गी मुझसे है यारा
हर आरजू को मैं दिल में दबा लूंगा
मैं तेरे रास्ते का पत्थर बन जाऊं
तेरे तो रास्ते से ख़ुद को हटा लूंगा
अगर मै सुकून से मर भी ना पाऊं
जिन्दा रहकर मैं ख़ुद को सजा दूंगा
G040
शाम-ए-सफर
शाम-ए-सफर में गर हमनशी का साया भी हो
ज़िन्दगी यूं ही सफ़र में गुज़ार दू मैं
किसे फ़िक़्र मंज़िल मिले न मिले
चंद लम्हे तेरे संग गुज़ार लू मैं
दोनों जहाँ की जन्नत हैं तेरे कदमो में
इस जन्नत पे हर जन्नत निसार दू मैं
भूल कर भी तू मुझें भुला न सके
आ तुझे आज इतना प्यार दू मैं…
हर अलफ़ाज़ तेरा खुदा का नगमा है
इन नगमो पे ख़ुदाई भी वार दू मैं
तेरा दीदार करमगर हो न हो ‘राजा’
तेरा तसव्वुर ही साँसो में उतार लू मैं
G041
तुम ख़ुद को
तुम ख़ुद को मेरी निगाहों से देखो
तुम्हें ख़ुद से प्यार हो जाएगा
आइने के सामने जब संवरोगी
आइना बेकरार हो जायेगा
अपने दिल से जो पूछो मेरा पता
खत्म ये इंतज़ार हो जाएगा
इक बार तुम मिलो तो सपनो में
तुम्हें प्यार बेशुमार हो जाएगा
नज़रें हमसे मिला के तो देखो
इनक़ार इक़रार हो जाएगा
G043
तुम साथ हो
गर हो तुम साथ बूँद भी बरसात है
सुबह सुहानी शाम मस्तानी मदहोश हर रात है
कल-तक तो ज़िन्दगी का हर लम्हा था भारी
आज ये ज़िन्दगी आप की ही सौगात है
कभी सूने दिल में इक सहरा था बसता
अब तो जिधर देखिये उमड़ते जज़्बात हैं
कशिश तो कशिश है दोनों तरफ उठेगी
ये मोहब्बत नहीं तो फिर और क्या बात है
विरह के रात-दिन काटे नहीं थे कटते
अब तो हर रात हमारी सुहागरात है
*विरह- वियोग, अभाव
G044
तू सुकूं है
तू सुकून है तो ये शरर क्यों हैतू नहीं साथ तो ये सफ़र क्यों है जिसे देखते ही कयामत आ जायेमेरा यार इतना ग़दर क्यों है कुछ तो टूटा है जो चुप बैठे होटूटा नहीं दिल तो चश्मे तर क्यों है क्यूँ पीता है दर्द मेरा चुप रहकरमेरी हर आँह तेरी नज़र क्यों है मेरे लिए तूने दर-दर दुआएं मांगीतुझको मेरी इतनी फिकर क्यों है गर चाहता है मुझको तो खुलके बतातेरी चाहत में ये गर-मगर क्यों है इश्क़ कामिल होना अभी बाक़ी हैकामिल है तो अपनी ख़बर क्यों है मेरी तकदीर में गर तू है नहीं तोतू किसी और का मुकद्दर क्यों है जानता हूँ मैं की तू मेरा ख़ुदा है‘राजा’ भटकता दरबदर क्यों है *शरर- चिंगारी*कामिल- मुक़म्मल
G048
नींद से जागो
नींद से जागो तो कुछ ख्व़ाब दिखाएंदेखो आसमां संग तो महताब दिखाएं ये वो सफ़े है जो दूरियों से नहीं पढ़े जाते थोड़ा क़रीब तो आओ की किताब दिखाएं… अंधेरे ज़िन्दगी के सब उजाले हो जाएंगेइक दिया तो जलाओ की आफताब दिखाएं आईने से तुम खुद से ये क्या पूछते हो नज़रें हमसे तो मिलाओ की जवाब दिखाएं कितना चाहते हैं हम तुम्हे दिखला देगेंइक बार कहो तो हमसे की जनाब दिखाएं ये चाँद सितारे सब मदहोश हो जाएंगे हिज़ाब मुख से तो हटाओ की शबाब दिखाएं हम भी चिनाब में डूबने का हुनर रखते हैकच्चा घड़ा तो लाओ की सोहराब दिखाएं ये जमीं-आसमाँ दोनों एक कर देंगे इक आंसू भी गर बहाओ तो सैलाब दिखाएं *आफ़ताब-चाँद, चाँदनी *सोहराब-होंसला *आफ़ताब-सूरज *सैलाब-जलजला, बाढ़
G051
किसी का प्यार
किसी का प्यार उसको मिल गया होगाभरी धूप में बरसात का ये ही सबब होगा कोई उदास चेहरा फिर खिल उठा होगाजब कोई भुला ख़यालों से गुज़र गया होगा वो अपने दीदार-ए-यार को बेताब होगा जब चाँद ने बादलों का घूँघट किया होगा छुपाए नहीं छुपी होगी चेहरे की सुर्खियांजब यादों के साए ने होले से छुवा होगा हवा यूं ही नहीं मेहकी उनकी याद में कुछ ना कुछ तो उधर भी हुआ होगा वो उनकी यादों में सदा बस गया होगा जब वो बहुत दूर निकल गया होगा
G054
तूने मुझे इक बार
तूने मुझे एक बार तोआजमाया होता तेरी आंखों में मेरा प्यार तो आया होता काट लेता मैं ये ज़िंदगी तेरी यादों के सहारे तू कभी तसव्वुर में तो आया होता लहू अपना बिखेर देता आसमानों पे तूने कासिद से पैगाम तो भिजवाया होता उम्र भर कांटो पे चल कर तुझे ढूंढतामिलेंगे कभी ये भरोसा तो दिलाया होता तेरे हर अल्फाज पे यकीं मुझको होतातूने कभी कोई वादा तो निभाया होता हमारे सीने मे कुछ और ही रूह धड़कती तूने कभी अपना हाथ तो बढ़ाया होता
G055
आज इतनी इनायत
आज बस इतनी इनायत कीजिए रुख से पर्दा हटाने दीजिए बादलों अपने ये पहरे हटालोचाँदनी ज़मी पे आने दीजिए मुद्दतो बाद मिले हो हमको आँसू छलक जाने दीजिए हम भी अजनबी नहीं रहेंगेथोड़ा पास तो आने दीजिए कलियाँ फूल बन खिल उठेंगीभंवरे गुनगुनाने दीजिये बेख़्याली में भी मुस्कराओगेथोड़ा सरूर तो आने दीजिए बेकरारी से हमको ही ढूंढोगेइक शाँम साथ बिताने दीजिए राजा आपका मुरीद होगासर कदमों में झुकाने दीजिए
G057
कुछ ख़्वाब अधूरे
कुछ ख़्वाब अधूरे है पूरे कर दो नाकुछ ज़ख़्म धतूरे है मरम कर दो ना बहारे रूठ गयी मौसम फ़िज़ा का हैबादल बन चाहत की बारीश कर दो ना अंधेरे हैं हर तरफ उजाले उदास हैंचांदनी बन दिल को रौशन कर दो ना उदास उतरे चेहरे लावारिस भटक रहेदर अपना उनको देकर जीवन भर दो ना यह सफ़र जिंदगी का अब तन्हा नहीं करता इन जुल्फ़ो की छाँव में छोटा सा घर दो ना वीरान सूनी आँखों और ना उम्मीदें हैंमीठे प्यारे सपने आँखों में भर दो ना सुलग रहे हैं अरमा कब से याद नहीं अपने नाजुक होंठ इन पे धर दो ना जिस चेहरे पे तुमको नफरत दिखती हो उन चेहरों पे मिट्टी प्यार की मल दो ना
G060
तू मेरा हो नहीं सकता
तू मेरा हो नहीं सकता जानता हूँ मगरफिर भी दिल लगाने को जी चाहता है हर हसरत नेस्तनाबूद हो जाएगी मगरहसरतें और जगाने को जी चाहता है आतिश-ए-इश्क़ है ये जला के ख़ाक कर देगा इस आग में जल जाने को जी चाहता है चले जाओगे तुम तन्हा छोड़ कर हमें कुछ पल साथ बिताने को जी चाहता है तू परछाई है मेरी छू भी नहीं सकता फिर भी हाथ बडाने को जी चाहता है हर चाहत पे जो रहमत की बारिश कर देऐसा खुदा मनाने को जी चाहता है खुशफ़हमीयां कुछ पल की टूट जायेगी मगर आज फिर मुस्कुराने को जी चाहता है
G063
दूर से पूछोगे हाल
दूर से पूछोगे हाल तो अच्छा ही बताएंगेआओगे थोड़ा पास तो दिल खोल के दिखाएंगे दिल से करोगे सवाल तो हर जवाब सुनाएंगे किताबें खोल पढ़ोगे तो कुछ ना बोल पाएंगे गर चलोगे हमारे साथ तो ताउम्र साथ निभाएंगे होंगे हमसे नाराज तो हम ही मनाएंगे गाओगे हमारे साथ तो रोज महफिले जमाएँगेबनोगे हमारा साज तो साथ गुनगुनाएंगे बनोगे हमराज तो कुछ ना छुपाएंगे करोगे ना हमसे बात तो दूर हो जाएंगे हाथों में दोगे हाथ तो जन्नत दिखलाएंगे इक वादा कर दो आज की हम वफ़ा निभाएँगे छू लोगे साँसों से तो ख़ुशबुएँ महकाएँगेथोड़ा भी कर लो प्यार तो मर ही जाएँगे
G016
इख़्तिलात कीजिए
मोहब्बत कीजिए या अदावत कीजिएकुछ तो कीजिए चाहे खज़ावत कीजिए समझेंगे तुझको भी हम दोस्त अपनाकभी हमसे भी तो शिकायत कीजिए अपने लहू को हम स्याही बना लेंगेकभी सामने आकर बगावत कीजिए हम भी शेखावत से क्या कम नहींकभी हमारी भी तो वज़ाहत कीजिए समझेगे तुझको भी हम अली-वलीकभी नज़रे इधर भी इनायत कीजिए इन मुलाकातो का क़ोई अंजाम नहींअब और ना ऐसी कवायत कीजिए ऐसे ना देखो मुझे ऐसे ना प्यार करोआप इतनी भी ना हिदायत कीजिए *इख्तिलात (friendship)*अदावत (enmity)*खज़ावत (shameful)*शेखावत (generously/forgiveness)*वज़ाहत (respect)*अली वली (God or Almighty)
G024
आज का दिन
आज का दिन फिर कहानी हो गया
आना उनका बेईमानी हो गया
न आये न बैठे न दिल की बात की
आना उनका मेहरबानी हो गया
सुनानी थी उन्हें अपने दिल की दास्तां
ये दिल बेचारा बेजुबानी हो गया
यूँ पराया बनके भी कोई आता है
वक़्त सारा मेजबानी हो गया
अफ़साना बन गयी है ज़िन्दगी
प्यार मेरा किस्से-कहानी हो गया
आँखों में बसा लो मुझे काजल बना
जिस्म मेरा सुरमे-दानी हो गया
ख़ुद को समझें है वली किस बात पे
यार मेरा बदगुमानी हो गया
दिल क्यूँ मेरा अब कही रुकता नहीं
ये भी तुम सा आना-जानी हो गया
दिल क्यूँ मेरा अब मेरे बस में नहीं
दिल ये मेरा ‘राजा’ जानी हो गया
*मेजबानी- मेहमानदारी, अतिथि सत्कार
*बदगुमानी- कुधारणा, शक
G042
रुठा है यार मेरा
रूठा है यार मेरा उसे मनाऊं कैसेकरते है इंतहा प्यार बताऊँ कैसे तू है मेरा हमसफर तू ही हमसायातुझसे दूर मैं जाऊं तो जाऊं कैसे सजती नहीं कोई महफ़िल अब तेरे बिनाइस महफ़िल को सजाऊं तो सजाऊं कैसे सरे आइना मैं हूं पशे आइना है कौनचेहरा तुझें दिखाऊं तो दिखाऊं कैसे तेरे बिना कटता नहीं मेरा इक पल भीबहुत लम्बी है ज़िंदगी बिताऊ कैसे
*सरे आइना- दर्पण के आगे
*पशे आइना- दर्पण के पीछे
G045
क्यूँ ना आज कुछ
आजा क्यूँ न कुछ यूँ किया जाए
तेरी यादों के साथ तले सोया जाए
घर को अपने फूलों से सजाया जाए
खुशबुओ को साँसो मे बसाया जाए
घरोंदा अपना प्यार से बनाया जाए
हर तिनका शिद्दत से सजाया जाए
जश्न-ए-उल्फत को यूँ मनाया जाए
मेला खुशियों का दिल से लगाया जाए
महफ़िल को यूँ रंगीन बनाया जाए
साज-ए-उल्फ़त ही सिर्फ बजाया जाए
अनबुझी प्यास को यूँ बुझाया जाए
जाम-एँ-मोहब्बत ही पिलाया जाए
दोस्ती को कुछ ऐसे निभाया जाए
दिल खोल के यार को दिखाया जाए
दूरियों को ऐसे खत्म किया जाए
प्यार दिया जाए प्यार लिया जाए
मुस्कराऐं जब भी याद किया जाए
वादा ये ख़ुद से आज किया जाए
*उल्फत- प्यार, मुहब्बत, स्नेह, प्रेम
G046
प्यार का ये भरम
प्यार का ये भरम तो देखिए
यार का ये करम तो देखिए
नज़रें उनको ढूंढ़ती है हर तरफ
बेख़्याली का चरम तो देखिए
रोज़ करके वादा रोज़ तोड़ना
उनका दीनो-धरम तो देखिए
क़त्ल करने आए ख़ंजर सोचकर
हाथ मे पकड़े मरहम तो देखिए
बेदर्द नज़रें मिलते ही झुक गईं
आँखों में उनके शर्म तो देखिए
अफसाना मेरा सुनते ही रो दिए
दिल कितना है नरम तो देखिए
जिस्म ठंठा हो गया तो क्या हुआ
साँसें हमारी गरम तो देखिए
ज़िन्दगी की जंगअभी हारे नहीं
हौसले हमारे परम तो देखिए
फिज़ा में कभी तो बहार आएगी
‘राजा’ का बाग़बाँ हरम तो देखिए
G028
आज फिर उनकी यादों
आज फिर उनकी यादों का आना हुआ
आज फिर दिल को यूँ समझाना हुआ
हसरतें तो उठेगी नादां दिल में
आज फिर हसरतों का दबाना हुआ
भूले से कभी तुम भी मिलने आ जाओ
बिछडे हुए हमें तो इक ज़माना हुआ
दरवाजे पे आकर न करो इंतजार
जबसे गए हो ना कुण्डी लगाना हुआ
मिलने की कशिश होती तो मिल ही लेते
वस्ल-ए-ख़ौफ दुनिया तो सब बहाना हुआ
जाते हुए तुम उस दिन क़ुछ तो कह देते
आपका चुप रहना भी इक़ फ़साना हुआ
हम तुम्हारे दिल के थे जितने करीब
क्या हुआ अचानक सब बेगाना हुआ
ज़ख्म दबाते-दबाते नासूर न हो जाए
आज ज़ख्मों का बाजार लगाना हुआ
तेरा वक़्त भी इक़ दिन ज़रूर आएगा
बार-बार दिल को यूँ बहलाना हुआ
जलेगा उम्मीद-ए-चिरागा मेरे लहु से
आज फिर इक ख़ंज़र दिल मे ख़ुबाना हुआ
गुनाह उम्र भर के वो सब माफ़ कर देगा
आज फिर मेरा उससे माफीनामा हुआ
जुबां पे मेरा नाम आते ही कुछ कह देते
दांतो से होंठ दबाना दर्द छुपाना हुआ
जाते हुए तेरा मुझे मुड़ के देखना
इसी अदा पर तो ये दिल दीवाना हुआ
बहुत देर ना हो जाए कहीं आते-आते
इक दिन ख़बर मिले ‘राजा’ चलाना हुआ
G029
अब आ भी जा
अब आ भी जा फिर ना कभी जाने के लिए
तू ही बता क्या करूं मै तूझे मनाने के लिए
ये मासूम सा दिल मेरा कितने सितम सहे
क्या तुझे मैं ही मिला था यूँ सताने के लिए
अब और ना बड़ा तू मेरा दर्द-ए-ज़िगर
लोग क्या कम थे मेरा दर्द बढ़ाने के लिए
और कितने इम्तिहानों से गुज़रना पड़ेगा
सारी उम्र पड़ी है मुझे आज़माने के लिए
हम सा दीवाना तुम्हें और कहीं न मिलेगा
लोग तो बहुत मिलेंगे दिल जलाने के लिए
आँखों में रोके आँसू अब और नहीं रुकते
बहुत दर्द होता है इन्हें छुपाने के लिए
आओ अपने घर को हम मिलके सजाएं
उम्र लग जाती है घर इक बनाने के लिए
क्यूँ रोए आप तन्हाईयों में यू मेरे लिये
कौन रोता है अब इस दीवाने के लिए
इतना मशहूर हो गए है हम तेरे शहर में
गैर भी आने लगे हमें समझाने के लिए
छोटी सी है ज़िन्दगी हँसकर गुज़ार दे
कही कल हम ही ना रहें तुम्हें मनाने के लिए
G030
हाल-ए-दिल किससे
हाले-दिल कहें किससे वो बतलाए तो
ख़्यालों मे जो है वो सामने आए तो
सितारे सारे मदहोश हो जाएँगे
चाँद बादलों का नक़ाब हटाए तो
गाल गुलाबी आसमां के हो जाएँगे
कभी बेखयाली मे वो शरमाए तो
फ़ना हो जायेंगे उन आँखों मे खोकर
कभी हमसे नज़रें वो मिलाए तो
ना लौटेंगे हम कभी उनके दर से
कभी मुझे अपने पास वो बुलाए तो
सुना देंगे उन्हें इस दिल की दास्तां
कभी हाल-ए-दिल वो पूछने आए तो
दर्द सब उनके पल मे फ़ना हो जाएंगे
कभी दर्द दिल अपना वो दिखलाए तो
G035
मिला न प्यार
मिला ना प्यार तो रिंदो से दोस्ती कर ली
यू हमने अपने ही दिल से दिल्लगी कर ली
मगरूर थे अंधेरे कि राज उनका है
घर अपना जला हमने रोशनी कर ली
मेरे दुश्मन भी मेरा ये हौंसला देख
घबरा गए इतना कि आके दोस्ती कर ली
जो भी मुहब्बत से हमसे पेश आया
सर अपना झुका हमने बंदगी कर ली
होंगे मजबूर वो बहुत जो बेवफा हुए
ये सोच कर इस दिल ने तस्सली कर ली
उजाले यू हुए उनके आने से हर तरफ
कि अंधेरों ने घुट के खुदकुशी कर ली
*मगरूर- घमंडी, अभिमानी
*बंदगी- आज्ञाकारिता, आराधना, नम्रता, भक्ति सेवा
G056
अश्क बहते हैं
अश्क बहते हैं सारी रात कि तुम आ जाओ
आंसुओं की है बरसात कि तुम आ जाओ
तेरे ख़्यालों की स्याही से लिखूं खत तुझको
कितना तुझको मैं करूं याद कि तुम आ जाओ
ये शाम की तन्हाई मेरा दम ले लेगी
कितना दीवारों से करूं बात कि तुम आ जाओ
गूंजने लगी है कानो में मेरे अब शहनाईयाँ
चली अरमानो की है बारात कि तुम आ जाओ
गुलों पे किस के है ये अश्क़ यूं ही बिखरे हुए
चाँद भी रोया है मेरे साथ की तुम आ जाओ
कब होगा दीदारे-यार म्यस्सर मुझको
आज बस में नहीं जज़्बात कि तुम आ जाओ
इक उम्र का फासला है दरमियाँ हमारे
मोला दीखा कोई करामात कि तुम आ जाओ
आखिरी हिचक ‘राजा’ आ ही ना जाये
बिगड़ते जाते है हालात कि तुम आ जाओ
*सुर्ख़- लाल जैसे—सुर्ख़ गाल
*मयस्सर- मिलता या मिला हुआ, प्राप्त, उपलब्ध
G064
तन्हा-तन्हा सा
तन्हा-तन्हा सा ये मन क्यों है
तू है गर साथ तो आंख नम क्यों है
तन्हा है चांद और तन्हा तारे
हर खुशी है फिर ये गम क्यों है
ना शुकराना किया तूने कभी रब का
फिर भी उसका इतना करम क्यों है
ना बाट सके कभी तुम मेरी तनहाईया
करते हो हमसे प्यार ये भरम क्यो है
दर्द सहने की अब आदत सी हो गई है
फिर ये जख़्मों पे मेरे मरहम क्यों है
रुस्वा किया तूने हर महफिल में हमको
फिर ये तेरी निगाहें मे शरम क्यों है
हर बादल तो बरसा मेरेआंगन में
फिर ये उजड़ा-उजड़ा सा चमन क्यो है
हर लम्हा तो तेरा नसीब है मुझको
फिर भी दूर मुझसे सनम क्यों है
कैसे खुश हो अपनों का घर जलाकर
‘राजा’ ये दुनिया इतनी बेरहम क्यो है
*रुसवा- बदनाम बेइज़्ज़त
G065
ना तुम्हारा दिन निकलेगा
ना तुम्हारा दिन निकलेगा ना हमारी रात होगी
ना जिंदगी में अब हमारे कभी जुम्म-ए-रात होगी
शाम-ए-सफ़र में जब भी तन्हाँ होंगे हम
ख्यालों ही ख्यालों में अब हमारी बात होगी
किस-किस को सुनाएंगे हम अपना ये फ़साना
अज़नबी चहरों से रोज मुलाकात होगी
ना फिर मिलेंगे हम ना ही कभी बात करे
ज़िन्दगी तो हम जियेंगे पर खैरात होगी
वस्ले-ख़ौफ़ जेहन में कुछ इस कदर हावी होगा
सिसकियाँ तो होगी पर ना आवाज होगी
हसरतों पे किसका जोर वो तो उठेगी ही
पर ना आँख नम होंगी ना बरसात होगी
सितम कितने भी कर ले ये ज़माना हम पे
क़भी तो इस जहाँ में कयामत की रात होगी
दूर कितने भी हो हम इक दूजे से मगर
मुहब्बत दरमियां हमारे बेहिसाब होगी
G066
उसको मेरा दर्द
उसको मेरा दर्द अब समझ आया होगा
जब किसी दोस्त ने दिल उसका दुखाया होगा
महफ़िल में मिला होगा वो सब से मुस्कुराकर
और तन्हा दरिया आँसूओं का बहाया होगा
हाथों की लकीरों में मेरा नाम ना देखकर
अपने हाथों को उसने अंगारो पे जलाया होगा
अपनी ही सूरत को वो पहचान ना पाया होगा
जब वक़्त ने उसको आईना दिखाया होगा
याद उसको मेरी आई तो जरूर होगी
जब कोयल ने गीत प्यार का गाया होगा
उनकी आंखों में इक आँसू तो आया होगा
जब किसी ने उसे मेरा हाले दिल सुनाया होगा
जिक्र मेरा महफ़िल में जब भी आया होगा
सीने मे उठा दर्द बामुश्किल दबाया होगा
वक्त कब किसका बदल जाए किसको पता
वक्त ने ये सबक उसको भी सीखाया होगा
कभी तो करेगा मुझको उस दर्द में शामिल
जिस दर्द को उसने दुनिया से छुपाया होगा
G067
दिल को पत्थर
दिल को पत्थर भी कर लूं तो भी क्या हो
जायेगा
तेरी यादों का क्या सिलसिला रुक जायेगा
शमा जलते ही तेरे साये को चले आना
और मुझमे समा जाना क्या ये भूल पाएगा
मोहब्बते सरूर जो तुम्हारी आंखों में खुमार था
गर वही ना रहा तो और क्या रह जाएगा
कोशिश जितनी भी कर लो तुम मुस्कुराने की
गर हम ही ना रहे तो आँसू टपक ही जाएगा
G070
अश्क़ बहते नहीं
अश्क़ बहते नहीं अब तेरी बेफावाई में
हम तो खुश रहते हैं उस रब की रज़ाई में
दूर रहकर भी हम सुकूँ तालाश लेते हैं
ख़लिश उठती नहीं अब तेरी जुदाई में
यक़ी आता नहीं तुमको तो छोड़ दो हमको
कुछ और कहना नहीं हमें अपनी सफाई में
तुम सुकूँ से जिओ हम कतरा सुकूँ तरसें
हरगिज़ मंज़ूर नहीं यूँ जीना आशनाई में
हम तुम्हें सोचें तुम सोचो किसी और को
ऐसे भी क़ोई जीता हैं इतनी बेहयाई में
लेते हैं लोग मज़ा अब मेरी बेबाकी का
नाम जब भी हम लेते है तेरा दुहाई में
हम भी सोचें क्यों अच्छे न हुए अब तक
कुछ तो मिलाया है तुमने मेरी दवाई में
जब तलक ताल ना मिले नहीं नाचते हम
उमर बेताला नाचे है हम तेरी तिहाई में
धोखे खाना कोई दुश्वार नहीं है हमको
ना होंगे खाक हम अब तेरी हरजाई में
लुभाता नहीं अब हमें दिलकशों का हज़ूम
कुछ नहीं रखा पत्थरों से दिल लगाई में
हर गुनाह तेरा मैं अपने सर पे ले लूं
यही तो कहते रहे तुम मेरी हर रिहाई में
रात भर जागने से गुरेज नहीं हैं हमको
कर लेते हैं नींद हम पूरी इक जम्हाई में
दिखते नहीं किसी को ये ज़ख्म हमारे
सब दफना दिए हैं इस दिल की गहराई में
आईने में देखो कभी तुम अपना चेहरा
मुरझा सा गया है अपनी ही लगाई में
तुम सुकूँ से जिओ हम कतरा सुकूँ तरसे
हरगिज़ मंज़ूर नहीं यू जीना आशनाई में
मुफलसी मैं क्यों मेरे दुश्मन जिए
राजा तो अब जिएगा अपनी शहनशाई में
*ख़लिश- चुभन, कसक
G071
तन्हा दिल तन्हा सफर
तन्हाँ दिल तन्हाँ सफर
तन्हाँ चाँद तन्हाँ डगर
भीड़ है अकेलों की
कौन किसका हमसफर
कहने को सब साथ है
कौन अपना है मगर
धुआं धुआं है जिंदगी
धुआं धुआं है ये शहर
खो गए सब रास्ते
खो गया है अपना घर
कौन देखे मेरा गम
कौन सी है वो नज़र
ख़्वाहिशें दम तोड़ती
आया कैसा ये भंवर
‘राजा’ चलाना हुआ
आज की ताजा ख़बर
G072
मेरी हसरतों को
मेरी हसरतों को और कितना तरसाओगे
कभी तो तुम मेरी उल्फ़त को समझ पाओगे
कश्ती मेरी मझधार ले जा तो रहे हो
डूब गया मैं तो तुम भी कहा बच पाओगे
मैं कतरा ही सही मेरा कुछ वजूद तो है
मैं ना हूँ तो तुम समंदर क़ो जाओगे
मैं वक़्त हूँ थाम लो मुझे बाहों में
गुजर गया पल तो सोचते रह जाओगे
अभी तो रात बाकी है घूम लो आवारा
सूबह तो तुम लोट के घर ही आओगे
आवाज़ दोगे जब भी मुझे दिल के झरोकों से
हर तरफ देखूंगा जिधर नगर घुमाओगे
जलेगा उम्मीदें-चिरागा मेरे बुझने तक
हर लो में दिखूंगा, जो शमा जलाओगे
भूले से भी कोशिश करोगे भूलने कि हमें
उतना याद आऊंगा जितना मुझे भुलाओगे
G074
बहुत चोट खाये
बहुत चोट खाये हो क्यूँ बताते नहीं
सब दिल में छुपा रखा है दिखाते नहीं
मुस्कुरा तो रहे हो मगर आँखे नम हैं
क्यूँ हाल-ए-दिल किसी को सुनाते नहीं
दर्द का रिश्ता है कुछ तो बोलो
चुप रहकर किसी को सताते नहीं
चोट खाई है दर्द तो होगा ही
क्यूँ रहबर को अपने बुलाते नहीं
गम है तो खुशियाँ भी आ जाएगी
क्यूँ अपने दिल को ये समझाते नहीं
दर्द है तो दवा भी मिल जाएगी
क्यूँ जाम होंठों से अपने लगाते नहीं
हवा भी आएगी खिड़कियां तो खोलो
बदले मौसम से यूँ घबराते नहीं
पूरे होंगे सब ख्वाब उठो तो सही
यूँ अरमानों को अपने दबाते नहीं
उजालों से तुम कब तक छुपोगे
अंधेरे हैं क्यूँ शमा जलाते नहीं
मांझी में डूबकर आँसू मत बहाओ
बुरा सपना समझ क्यूँ भुलाते नहीं
हिम्मत दिखाओ कुछ कदम बढ़ाओ
ज़िन्दगी हंसी है क्यू गले लगाते नहीं
*रहबर- मार्गदर्शक
*शमा- दीया, मोम
G075
जब से गये हो तुम
जब से गए हो तुम परेशान हूँ मैं
अब तक कैसे जिंदा हैरान हूँ मैं
नज़रों से दूर हो आवाज कैसे दूँ
तुम बिन जहाँ में बेजुबान हूँ मैं
इंतज़ारे-बेकरारी मेरा दम ले लेगी
अब लोट भी आओ पशेमान हूँ मैं
तुम मुझे न चाहो ये तुम्हारी मरज़ी
अब तो कुछ पल का मेहमान हूँ मैं
नज़रें मिलाओ या मिलाके झुकाओ
तुम्हारी हर अदा पे कुरबान हूँ मैं
हमें भी जीने की वजह मिल जाएगी
इक बार कह दो तुम्हारी जान हूँ मैं
तुम्ही मेरी हस्ती तुम्हीं सरमाया
बिना तुम्हारे बेकार बेनाम हूँ मैं
*पशेमां- लज्जित, पछताने वाला
*सरमाया- धन दौलत संपत्ति सर्माया
G068
जब कभी तेरी
जब कभी तेरी याद आती है
रात आँखों में गुज़र जाती है
मेरी तन्हाई मेरा हमसफर
मेरा पल-पल साथ निभाती है
कब तक करूँ इंतज़ार तेरा
तू ना आती है न बुलाती है
रूठ कर उम्र क्यूँ जाया करें
बेवजह बात क्यों बढ़ाती है
आओ चलो सामान बाँध लें
गाड़ी प्यार कि छूटी जाती है
*बेसबब- अकारण, बेवज़ह
G069
हम तो मिट जाएंगे
तुम जैसा कोई जहाँ में दिलबर ना होगा
हम जैसा भी कोई दिलाबर ना होगा
नामवर तो तुमको मिल जाएंगे हज़ारों
मगर हम जैसा भी कोई मुनावर ना होगा
हम तो मिट जायेंगे तेरी बेवफाई रो-रो के
तुझे तो ये बहाना भी मयस्सर ना होगा
तोड़कर हर उम्मीद मेरी जा रहे हो तुम
दुश्मन भी तुमसा कोई सितमगर न होगा
दोस्त तो मिल जाएंगे तुमको हज़ारों
मगर हम जैसा कोई करमगर न होगा
याद आएंगे हम उस दिन तुमको बहुत
जब तुम्हारे पास कोई रहबर न होगा
खुद ही कत्ल करके खुद ही फैसला सुना दे
मुन्सिफ़ भी तुमसा कोई मुकर्रर न होगा
यूं ही चल दिए तुम हमसे मुँह मोड़कर
इतना भी कोई तुमसा बेकदर न होगा
*दिलावर- साहसिक बहादुर
*नामावर- विख्यात प्रसिद्ध
*मुनावर- चमकदार
*मुकर्रर- जो ठहराया गया हो, तय किया हुआ, निश्चित
G061
यकीन आता नहीं
यक़ी आता नहीं अब तेरी बेगुनाही में
बहुत धोखे खाये हैं हमने आशनाई में
हर गुनाह तुम्हारा मैं अपने नाम ले लूं
यही तो कहते रहे तुम मेरी रिहाई में
काटता हूँ सजा मैं तेरे हर गुनाह की
होता नहीं दर्द तुझे मेरी बेगुनाही में
कत्ल करके तुम साफ बच निकलते हो
मिटा देते हो सब सबूत बडी सफाई में
चाहे कुबेर बनालो बेगुनाहों के खून से
कभी बरकत होती नहीं ऐसी कमाई में
इतने गुनाह करके भी मासूम दिखते हो
कैसे जी लेते हो तुम इतनी बेहयाई में
मिलता है सिला सबको किए कर्मो का
ताकत बहुत है उस रब की ख़ुदाई में
G073