बहुत चोट खाये

बहुत चोट खाये

बहुत चोट खाये हो क्यूँ बताते नहीं 
सब दिल में छुपा रखा है दिखाते नहीं


मुस्कुरा तो रहे हो मगर आँखे नम हैं 
क्यूँ हाल-ए-दिल किसी को सुनाते नहीं


दर्द का रिश्ता है कुछ तो बोलो 
चुप रहकर किसी को सताते नहीं


चोट खाई है दर्द तो होगा ही 
क्यूँ रहबर को अपने बुलाते नहीं


गम है तो खुशियाँ भी आ जाएगी 
क्यूँ अपने दिल को ये समझाते नहीं


दर्द है तो दवा भी मिल जाएगी        
क्यूँ जाम होंठों से अपने लगाते नहीं


हवा भी आएगी खिड़कियां तो खोलो   
बदले मौसम से यूँ घबराते नहीं
  
पूरे होंगे सब ख्वाब उठो तो सही 
यूँ अरमानों को अपने दबाते नहीं


उजालों से तुम कब तक छुपोगे 
अंधेरे हैं क्यूँ शमा जलाते नहीं


मांझी में डूबकर आँसू मत बहाओ 
बुरा सपना समझ क्यूँ भुलाते नहीं 
 
हिम्मत दिखाओ कुछ कदम बढ़ाओ  
ज़िन्दगी हंसी है क्यू गले लगाते नहीं

 

*रहबर- मार्गदर्शक
*शमा- दीया, मोम

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