तन्हा-तन्हा सा ये मन क्यों है
तू है गर साथ तो आंख नम क्यों है
तन्हा है चांद और तन्हा तारे
हर खुशी है फिर ये गम क्यों है
ना शुकराना किया तूने कभी रब का
फिर भी उसका इतना करम क्यों है
ना बाट सके कभी तुम मेरी तनहाईया
करते हो हमसे प्यार ये भरम क्यो है
दर्द सहने की अब आदत सी हो गई है
फिर ये जख़्मों पे मेरे मरहम क्यों है
रुस्वा किया तूने हर महफिल में हमको
फिर ये तेरी निगाहें मे शरम क्यों है
हर बादल तो बरसा मेरेआंगन में
फिर ये उजड़ा-उजड़ा सा चमन क्यो है
हर लम्हा तो तेरा नसीब है मुझको
फिर भी दूर मुझसे सनम क्यों है
कैसे खुश हो अपनों का घर जलाकर
‘राजा’ ये दुनिया इतनी बेरहम क्यो है
*रुसवा- बदनाम बेइज़्ज़त
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