वो ना देखते

वो ना देखते

वो न देखते न मुस्कुराते न बात करते है
मुहब्बत हमसे करते हैं अजी क्यॉ बात करते हैं
 
भरी महफ़िल मे वो हमसे नज़रे चुराते हैं
और छुपकर निगाहों से आघात करते हैं
 
ये उनकी बेखुदी है बेरुखी या बेख्याली है
हम खुद से अक्सर ऐसे सवालात करते हैं
 
कभी तन्हाई में जो पूछूं बेरुख़ी का सबब
भरके आँखों में बादल बरसात करते हैं 
 
उनकी कातिल निगाहों से कितने कत्ल हो गए
देखें वो कब हमसे निगाहें चार करते हैं
 
बहारे बीत गयी कितनी ये आस लगाए
शायद इस बहार हमसे मुलाक़ात करते हैं
 
हया बहुत है उनमे ख़ुद ना बोलेंगे कभी
देखें कब हमसे मुहब्बते इज़हार करते हैं
 
या रब कब होगा फैसला मेरी जुदाई का
देखें कब मोला क़यामत की रात करते हैं

G025

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *