Posted inGhazal/Nazm मुहब्बत में जब Posted by Bhuppi Raja August 1, 2000No Comments मुहब्बत में जब मुहब्बत मे जब रब की ईनायत हो जाती हैजो भी वो बोले वो ही रूबायत हो जाती है तरसे हो इक कतरा और मिल जाए दरियातकदीर की कभी ऐसी कवायत हो जाती है आतिश-ए-इश्क़ सुलग जाए तो बुझता नहीरब से मेरी बरहा शिकायत हो जाती है उन्हे सोच कर मैं ना सोचूं किसी और कोउनकी मुझे ऐसी भी हिदायत हो जाती है तुम न हो तो तुम्हारे अक्स से ही प्यार करुंहमसे भी कभी ऐसी हिमायत हो जाती हैG023 Post navigation Previous Post वो ना देखतेNext Postआज फिर हमसे