Posted inGhazal/Nazm ना ज़फा में तड़पे Posted by Bhuppi Raja March 1, 2001No Comments ना ज़फा में तड़पे न ज़फा में तड़पे न वफ़ा में मुस्कुराएऐसी भी ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी कहलाए मोहब्बत की बारिश में जो भीगी न होऐसी भी ज़िन्दगी अधुरी ही रह जाए कभी बाग़-बाग़ हंसना कभी दरिया रोनाये ही निशानियां तो मोहब्बत कहलाए कभी मिलने की तड़प कभी दुनिया का डर ये भी ना छूट पाए वो भी ना छूट पाए मोहब्बत के मारो पे सितम तो यही है वो मिलते तो है पर कभी मिल ना पाए मोहब्बत-मोहब्बत, मोहब्बत-मोहब्बतहम ही नहीं समझे तो कैसे समझाएG015 Post navigation Previous Post कुछ गम नहींNext Postक्यूँ तुम मुझमें