बेखयाली  में बरहा

बेखयाली  में बरहा

बेख्याली में बरहा वो ये भूल जाते हैं
नशेमन हो शबाब तो रिंदे लूट जाते है
 
मोहँब्बत नहीं आसान ये तो वो शै है
गर न मिले तो सरफ़राज भी टूट जाते हैं
 
जब भी होता है जिक्र तेरी आँशनाई का
ख्याँलो में तेरे हम अकसर डूब जाते हैं
 
मनाने से मेरे जो लज्ज़त आती है आपको 
तभी बात-बात पे आप हमसे रूठ जाते हैं 
 
न अंगडाई लो न देखो तिरछी नज़र से
अच्छे-अच्छो के ईमान पल मे टूट जाते है
 
मुद्दतो बाद नज़रे करमगर हुई उनकी
रूकता नहीं सैलाब ये आँसू फूट जाते हैं
 
बहुत नकाब पहने हैं लोगो ने यहां पर 
अपने ही चेहरे की पहचान भूल जाते हैं
 
कौन कब बदल जाए किसको पता है यारों 
सदियों पुराने रिश्ते भी पल मे टूट जाते हैं 
 
भीड बहुत है रास्तो में सम्भलकर ‘राजा’
कसकर पकडे हाथ भी अक्सर छूट जाते हैं

G006

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