Posted inGhazal/Nazm तुम मुझे जीने कि Posted by Bhuppi Raja October 1, 1999No Comments तुम मुझे जीने कि तुम मुझे जीने कि इक वजह दे दोज़िन्दगी मैं ये तुम पर लुटा दूंगा या मरने का दे दो हौसला इकपल में ही मैं खुद को मिटा दूंगा गर तेरी नाराज़गी मुझसे है याराहर आरजू को मैं दिल में दबा लूंगा मैं तेरे रास्ते का पत्थर बन जाऊंतेरे तो रास्ते से ख़ुद को हटा लूंगा अगर मै सुकून से मर भी ना पाऊंजिन्दा रहकर मैं ख़ुद को सजा दूंगाG040 Post navigation Previous Post शाम-ए-सफरNext Postतू न चाहे मुझे