Posted inGhazal/Nazm शाम-ए-सफर Posted by Bhuppi Raja September 3, 1999No Comments शाम-ए-सफर शाम-ए-सफर में गर हमनशी का साया भी होज़िन्दगी यूं ही सफ़र में गुज़ार दू मैं किसे फ़िक़्र मंज़िल मिले न मिले चंद लम्हे तेरे संग गुज़ार लू मैं दोनों जहाँ की जन्नत हैं तेरे कदमो में इस जन्नत पे हर जन्नत निसार दू मैं भूल कर भी तू मुझें भुला न सके आ तुझे आज इतना प्यार दू मैं… हर अलफ़ाज़ तेरा खुदा का नगमा हैइन नगमो पे ख़ुदाई भी वार दू मैं तेरा दीदार करमगर हो न हो ‘राजा’तेरा तसव्वुर ही साँसो में उतार लू मैंG041 Post navigation Previous Post तुम ख़ुद कोNext Postतुम मुझे जीने कि