आज इतनी इनायत

आज इतनी इनायत कीजिये

रुख से पर्दा हटाने दीजिये

 

बादलों! अपने पहरे हटालो

चाँदनी ज़मीं पे आने दीजिए

 

मुद्दतों बाद मिले हो हमको

आँसुओं को छलक जाने दीजिये

 

हम भी फिर अजनबी नहीं रहेंगे

थोड़ा पास तो आने दीजिए

 

कलियां फिर फूल बन के खिलेगी

भंवरे गुनगुनाने दीजिये

 

बेख़्याली में भी मुस्कराओगे

थोड़ा तो सरूर आने दीजिये

 

बेकरारी से  हमको ही  ढूंढोगे

एक  शाम साथ बिताने दीजिए

 

‘राजा’ आपका मुरीद होगा

 सर कदमों में झुकाने दीजिए

G057

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