ना ज़फा में तड़पे, ना वफ़ा में मुस्कुराएऐसी भी ज़िन्दगी, क्या ज़िन्दगी कहलाए मोहब्बत की बारिश, में जो भीगी न होवो ज़िन्दगी भी, अधूरी रह जाए बाग़-बाग़ हंसना, कभी दरिया-दरिया रोनाये निशानियां ही, तो दीवानगी कहलाये मिलने कि तड़प, कभी दुनिया का डरये भी न छूट पाए, वो भी न छूट पाए मोहब्बत के मारों पे, सितम तो यही हैवो मिलते भी हैं, पर मिल न पाए मोहब्बत-मोहब्बत, मोहब्बत-मोहब्बतहम ही नहीं समझे, तो कैसे समझाएं