Posted inGhazal/Nazm कोई मुझको मेरी खता Posted by Bhuppi Raja August 1, 2001No Comments कोई मुझको मेरी खता कोई मुझको मेरी खता तो बता दो फिर तुम मुझे जो भी चाहे सजा दो हर इलज़ाम तुम्हारा सर आँखों पे मेरे क्यूँ ना तुम मुझे बेड़िया पहना दो शिकवा ना करेंगे हम तुमसे कभी भी चाहे क्यूँ ना तुम मेरी हस्ती मिटा दो ख़ुदा माफ करे नादानियाँ तुम्हारीचाहे कीलें ठोक मुझको सूली चढ़ा दो प्यार में कान्हा के मैं खुल के नाचूंगी चाहे तुम मुझे प्याला जहर का पीला दो मोहब्बत गर गुनाह है ये सोचते हो तुम तो मुझको दीवारों में जिन्दा चिनवा दो ना छोड़ेंगे हम कभी अपनी दीवानगीक्यूँ ना तुम मुझे पत्थरों से मरवा दो चिनाब तो हम पार करके ही रहेंगे क्यूँ ना तुम मुझे कच्चा घड़ा ही ला दोG014 Post navigation Previous Post मेरे शहर के लोगNext Postकुछ ही लोग होते हैं