यूँ मेरा कत्ल

यूँ मेरा कत्ल

यू मेरा कत्ल करवाने की ज़रूरत क्या थी
इतनी  ज़हमत  उठाने की ज़रूरत क्या थी
 
हम  ख़ुद ही सर अपना सूली पे रख देते
इल्जाम सर अपने लगाने की ज़रूरत क्या थी
 
कत्ल तो हम इन निगाहों से भी हो जाते
फिर ये खंजर उठाने की जरूरत क्या थी 
 
जानते थे तुम की हम मोम का दिल रखते है
बस हाथ मिलाते दबाने की ज़रूरत क्या थी
 
हम भी किनारों पे डूबने का हुनर रखते हैं
कश्ती मझधार ले जाने की ज़रूरत क्या थी 
 
मोहब्बत-ए-इल्ज़ाम तुम्हारा हमें कबूल था 
फतवा-ए-मौत सुनाने की ज़रूरत क्या थी
 
काश! मेरा कातिल ही मेरा मुन्सिब होता  
हमें ये ज़ख्म छुपाने की ज़रूरत क्या थी
 
सुने थे हमने किस्से बहुत तेरी हरजाई के
सब हम पर आज़माने की ज़रूरत क्या थी 
 
गर न था मैं कभी तुम्हारे ख्वाबों ख़्यालों मे
इश्क हमसे जताने की ज़रूरत क्या थी
 
मिलती गर हमें तुम्हारी जुल्फों कि छाँव 
हमें बेवक्त मुरझाने की ज़रूरत क्या थी
 
बढ़ाने ही थे गर अंधेरे ही मेरी ज़िन्दगी में
चिराग़-ए-उम्मीद जलाने की ज़रूरत क्या थी
 
दो कदम भी न साथ चल पाए तुम जिन रास्तों पे
हमें वो रास्ता दिखाने की ज़रूरत क्या थी 
 
समझा नहीं सकते जब तुम हमें अपनी दलीलों से
हमे बार-बार समझाने की ज़रूरत क्या थी
 
मिलता गर साथ तुम्हारा हमे तन्हाइयों में
हमें ये महफ़िल सजाने की ज़रूरत क्या थी

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