सहरा में मिराज दिखाकर मुझे भटकाने वाले
तुम्हीं तो थे मेरे रहबर मुझे राह दिखाने वाले
यू खुश ना हो तू दुसरो के गुनाह गिनकर
तुम्हें भी मिल जाएंगे आईना दिखाने वाले
सूरज डूबते ही साया भी साथ छोड़ देता है
कल मेरा सूरज निकलेगा मुझे रुलाने वाले
गम के अंधेरो मे डूबी वीरान बस्तीओं में
कुछ लोग आज भी मिलेंगे दिया जलाने वाले
ये सर तेरे दर के सिवा कहीं नहीं झुकता
हम नहीं हर दर पे सर अपना झुकाने वाले
रब की हर रज़ा को जो अपनी रज़ा समझें
सुकून मे जीते हैं अहम अपना मिटाने वाले
वक़्त के आगे जो सर अपना झुका देते हैं
तूफ़ां में नहीं टूटते दरखत झुक जाने वाले
कौन है जो मेरी हस्ती मिटाना चाहता है
मिट गए सब जहाँ से हमको मिटाने वाले
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