कश्ती मेरी कितना

कश्ती मेरी कितना

किश्ती मेरी और कितना मझधार में ले जाओगे 
मैंडूब गया तो तुम भी कहाँ बच पाओगे 
 
मैं कतरा ही सही मेरा कुछ वज़ूद तो है
मैं ना हूं तो समंदर को तरस जाओगे 
 
रात अभी बाकी हैं घूम लो आवारा
सुबह तो तुम लोट के घर अपने ही आओगे
      
ढूँढोगे जब भी मुझे, दिल की नज़रों से
हर तरफ दिखूंगा, जिधर नज़र घुमाओगे 
 
मैं आज हूँ थाम लो मुझे बाहों में  …
गुज़र गया कल तो ढूढंते रह जाओगे 
 
जलेगा उम्मींद-ए-चिराग मेरे लहू से
हर लो में दिखूँगा, जो शमा जलाओगे

G059

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