Posted inGhazal/Nazm ना कोई आँख Posted by Bhuppi Raja May 3, 2002No Comments ना कोई आँख ना कोई आँख नम हो ना वफा कम होना कभी किसी से दूर उसका सनम हो ऐसा इस दुनियाँ को बना दे मेरे मौला जहाँ कभी किसी को ना कोई गम हो जमीन आसमां दूर मिल रहें हैं कहीं आँखों को कभी भी ना ऐसा भरम हो हर किसी में सबको तेरी सूरत दिखे हर शख़्स पे तेरा ही रहमो-करम हो हमारे घरों में न हो हिन्दू या मुस्लिमहर घर में सिर्फ़ इंसाँ का ही जन्म हो मज़हबी जहालत खत्म कर जहां सेइंसानियत ही जहां में सबका धर्म होG052 Post navigation Previous Post काश मैं भीNext Postज़िन्दगी मेरी रब की