क्यूँ मोहब्बत में हकीकत ढूंढते हैं लोग
कितने नादां है यारों, मेरे शहर के लोग
हर वक़्त जीने के बहाने, बेमाने लगते है
क्यूँ सागर में नहीं डूबते, मेरे शहर के लोग
रात भर करवटे बदलते, ये थके हारे से लोग
रोज़ इक नई दौड़ दौड़ते, मेरे शहर के लोग
हर कोई दौड़ रहा है ना जाने किस तालाश में
थोड़ा ठहर क्यूँ नहीं जाते, मेरे शहर के लोग
यारा की ज़ुल्फो-ए-साए में ये, ज़िन्दगी गुज़ार दो
क्यूँ घर पत्थरों का है ढूँढते, मेरे शहर के लोग
मुहँब्बत की दुनिया है, इबादत की दुनियाँ
क्यूँ दरो यार नहीं चूमते, मेरे शहर के लोग
गर मुहँब्बत इक नशा है, तो ये नशा ही सही
क्यूँ नशे में नही झूमते, मेरे शहर के लोग
खाली प्याला हाथ में और दिल भरा हुआ
क्यूँ राज-ए-दिल नहीं खोलते, मेरे शहर के लोग
तन्हा इतने कि अपनी ही परछाई साथ ना चले
तन्हा ही जिंदगी से झूझते, मेरे शहर के लोग
रिश्तो क़ो जोड़ने की हर, नाकाम कोशिश में
लम्हा-लम्हा है टूटते, मेरे शहर के लोग
अपनो को देखते ही ये नज़रे चुराने लगते
हाले-दिल तक नहीं पूछते, मेरे शहर के लोग
मुफलिसी मे अपना साया भी साथ छोड़ देता है
दौलत वालों को है पूजते, मेरे शहर के लोग
पिछे छुट जाने वालों का कोई इंतज़ार नहीं करता
कुछ देर भी नहीं रुकते, मेरे शहर के लोग
गिर जाने वालों को भी यहां कोई नहीं उठाता
उसे रोन्द कर है दौड़ते, मेरे शहर के लोग
दूसरों का महल देख ‘राजा’ झूठी शान में,
क्यूँ घर अपना है फूंकते मेरे शहर के लोग
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