बहुत गुनाह किए हमने
बहुत आँसू पिए हमने
ज़िन्दगी यूँ ही नहीं कटी
बहुत अफ़साने जिए हमने
बेशुमार कीमत चुकायी है
दर्द गहरे लिए हमने
कौन किसका साथी है
ज़ख़्म ख़ुद ही सिए हमने
किसने दिया कितना दर्द
कहाँ हिसाब किए हमने
कुछ क़र्ज़ चुकाने के लिए
सपने सब बेच दिए हमने
तुम्हीं क़ातिल तुम्हीं मुन्सिफ़
फैसले कबूल किए हमने
अधूरे ख्वाब कहाँ पुरे हुए
सूली सब भेट किए हमने
आत्म मंथन के जहर के
घड़े सब पी लिए हमने
कुछ रिश्ते बचाने के लिए
गुनाह सब सर लिए हमने
आखिरी कदम तो साथ दो
तन्हा सफऱ ही किए हमने
‘राजा’ तू कहाँ का पैगंबर
गुनाह सब माफ़ किए हमने
**अफ़साने- कहानी। उपन्यास।
**मुन्सिफ़- न्याय करनेवाला।
**आत्म-मंथन- विश्लेषण करना।
Visitors: 258