हमने इक शाम

हमने इक शाम

हमने इक शाम सुर्ख फूलों से सजायी है

और तुमने हो कि ना आने की कसम खायी है

 

दुआ होगी कबूल मेरी ये जानता हूँ मैं

हमने इक शमा तेरे हि दर पे जलायी है

 

जलेगा उम्मीद-ए-चिराग मेरी सांसों तक

हमने यही शर्त तूफ़ानों से लगाई है

 

बुतपरस्ती का इल्ज़ाम लगाते हैं लोग मुझपे

हमने तेरी मूरत जो इस दिल में बसायी है

 

समुन्दर कई पिए पर मन प्यासा ही रहा

हमने अपनी प्यास अंगारों से बुझायी है

 

जाते हुए उस दिन तेरा मुड़मुड़ के देखना

तूने इक उम्मीद इस दिल मैं जगायी है

 

तू मेरा दोस्त है हमदर्द है या हमसाया

हमने इस दिल में तेरी हर जगह बनाई है

 

ये मेरा दिल है या कोई बंद दरवाजा

‘राजा’ ने हर बात इस दिल में छुपाई है

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