Posted inImage Shayari Philosophy ज़िन्दगी Posted by Bhuppi Raja November 12, 1997No Comments ज़िन्दगी तू क्यूँ रेत बन गयीमैं जब-जब तुझे अपनी मुठ्ठी में भरकर मनचाहा आकार देना चाहता हूंतू रीत जाती है क्या मेरा तुझपर इतना भी अधिकार नहींकी तुझे जिसे मैंने जन्म से लेकर अब तक अपने कमजोर कांधो पर ढोया है उसे एक बारसिर्फ एक बार अपने मनचाहे आकार में डाल सकू Visitors: 53 Post navigation Previous Post हम तो मिट जायेंगेNext Postचाँद से सूरज से