ग़ज़ल/नज़्म

बहुत है दुनियां मे लोग, दर्द बढ़ाने वाले हमसे कहां मिलेंगे, मरहम लगाने वाले  लगाते है लोग रोज, दर्दो की नुमाइशहमसे कहां मिलेंगे, दर्द छुपाने वाले मतलब के ये लोग है, चार दिन के साथी  हमसे कहां मिलेंगे, ताउम्र निभान वाले  मगरमच्छी आंसू लोग, इतने बहाएंगेसैलाब ले आएंगे, कश्ती डुबाने वाले  खुशियाँ छीन लेगे, तुम्हें सपने बेचकर लीलाम कर देगे, अपना दिखाने वाले  दौलत की इंतहा भूख, और बेरहम लोग  कफन तक बेच डालेंगे, क़ब्र बनाने वाले  बढ़ा देंगे ये दर्द, तुम्हारा, माज़ी कुरेदकरकिसी को न बख्शेंगे, कमबख्त ज़माने वाले  पत्थर की दुनियां ‘राजे’, शीशे का तेरा दिल हर शहर में मिलेंगे, पत्थर चलाने वाले 

क्यों तुम मुझ में अपना, ख़ुदा ढूढ़ते होआप भी न जाने ये, क्या ढूढ़ते हो मुझको तो अपनी ही खबर नहीं आती और तुम मुझमें खबर-ए-जहाँ ढूंढते हो रात भर घूमता मैं, बेघर आवारातुम मुझमे औरो का, मकां ढूढ़ते हो भटके हो सारी दुनियां, मुझे ढूढ़ने मेंदेखा ना बगल में और,जहाँ ढूढ़ते हो धोखे में रखा तुमने, उम्र भर सभी कोइस मोड़ पे कौन सी, वफ़ा ढूढ़ते हो फतह करली तुमने, मंज़िले जहाँ कीअब कोन से सपनो का, मकां ढूढ़ते हो ना कद्र की तुमने वक़्त कि कभी भीअब कौन सा सुहाना, समाँ ढूढ़ते हो उम्र सारी गुज़री अपने ही रंजो-गम मेंअब कौन सा सुकू का, लम्हाँ ढूढ़ते हो चुप हूँ मैं अब कोई, बात नहीं करताक्यों तुम मुझमे अपनी, जुबाँ ढूढ़ते हो भुला दीए मैंने सब गुनाह तुम्हारेतुम मुझमे मेरी ही, खता ढूढ़ते हो ढूंढ सको तो ख़ुद को, ढूंढ के दिखा दोरब को तुम जाने कहाँ-कहाँ ढूढ़ते हो रब है तुम्हारे अंदर, इक नजर तो डालोक्यों मंदिर मस्जिद, हर दुकां ढूढ़ते हो


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बेख्याँली में बरहा, वो ये भूल जाते हैंनशेमन हो शबाब तो, रिंदे लूट जाते है मोहँब्बत नहीं आसान, ये तो वो शे हैं की गर न मिले तो सरफ़राज भी टूट जाते हैं जब भी होता है जिक्र, तिरी आँशनाई काख्याँलो में तेरे हम, अकसर डूब जाते हैं मनाने से मेरे जो लज्ज़त, आती है आपको तभी बात-बात पे आप, हमसे रूठ जाते है न अंगडाई लो न हमें, देखो तिरछी नज़र सेअच्छे-अच्छो के यहां, ईमान, यहां टूट जाते हैं मुद्दतो बाद आज नज़रे, करमगर हुई उनकीरूकता नहीं सैलाब, ये आँसू फूट जाते हैं बहुत नकाब पहने है, लोगो ने चेहरो पे अपने ही चेहरे को, अकसर भूल जाते है  कौन कब बदल जाए, किसको पता है यारों सदियों पुराने साथ भी, पल मे टूट जाते है भीड बहुत है रास्तो में, जरा सम्भलकर ‘राजा’कसकर पकडे हाथ भी, अकसर छूट जाते हैं 

**रिंदे – शराब और कबाब का शौकीन

**सरफ़राज – वियक्ति जिसपे खुदा मेहरबान हो 

**आशनाई – प्रेम, दोस्ती।

**लज्ज़त – लज़ीज़ होने का भाव। ज़ायका स्वाद।

जिसका गम हैं बस वही जानेदूसरा और कोई क्या जाने  वो ना समझे है ना समझेंगे कभीहम फिर भी लगे उनको समझाने  हम थे पागल जिस किसी के लिए वो तो किसी और के ही थे दीवाने जीना तो हर हाल में है मुझको  बहुत से कर्ज अभी हैं चुकाने खताऐ कुछ ऐसी हमसे हो गईउम्र भर भरते रहेगे हर्जाने कुछ ही पल थे जो मेरे अपने थे बाकी सब थे तो वो बेगाने  करते करते दर्दो का हिसाबबेख्याली में लगे मुस्कुराने अँधेरे सब जहाँ से मिट जाएंगेकुछ दिए प्यार के है जलाने

यें भी क्या बात हुई, की वो बात नहीं करते पहले जैसी हमसे वो, मुलाक़ात नहीं करते  ये उनकी बेरूख है, बेबसी या बेवफाई है ना जाने क्या बात है, क्यूँ बात नहीं करते बेबसी में कभी बात, करनी गर पड़ भी जाएउतनी बात करते है, अब हर बात नहीं करते महफ़िल मे हमारा गर, उनसे सामना हो जाएनज़रो से प्यार कि वो, अब बरसात नहीं करते  तन्हाई में कभी वो, सामने से गुज़र जाएंहिज़ाब उठाकर हमें वो, अब हैरात नही करते पहले तो बात-बात पे, वो तकरार करते थेखामोश रहते है वो, अब सवालात नहीं करते छोटी सी जिंदगी हैं, मोहब्बत में गुज़ार दोइस ज़िन्दगी को यू, ही खैरात नहीं करते जहाँ ना हो कद्र कभी, किसी बात कि हमारी वहाँ हम अपने जज्बात, यू बरबाद नहीं करते  यें भी क्या बात हुई, की वो बात नहीं करतेबात करते भी हैं तो दिल से बात नहीं करते…

सहरा में मीराज़ दिखाकर, मुझे भटकाने वालेतुम्हीं तो थे मेरे रहबर, मुझे राह दिखाने वाले  बहोत खुश ना हो तू यू, दुसरो के गुनाह गिनकर तुम्हें भी मिल जाएंगे, आईना दिखाने वाले  सूरज डूबने के बाद, साया भी नहि दीखताकल मेरा सूरज निकलेगा, आज मुझे रुलाने वाले  गम के अंधेरो मे डूबी, वीरान बस्तीओं में कुछ लोग आज भी मिलेगे, दीया जलाने वाले  ये सर तेरे दर के सिवा, कही और नहीं झुकता हम नहीं हर दर पे सर,अपना झुकाने वाले  रब की हर रज़ा को जो, अपनी ही रज़ा समझें सुकून मे जीते है अहम, अपना मिटाने वाले  वक़्त के आगे जो सर, अपना झुका देते हैतूफ़ा मे नहीं टूटते, दरख्खत झुक जाने वाले  कौन हैं वो जो मेरी, हस्ती मिटाना चाहता है  मिट गए इस जहाँ से वो, हमको मिटाने वाले

हर आदमी अकेला, परेशान बहुत हैं इस शहर में दोस्त कम, अनजान बहुत हैं  आदमी को कामिल नहीं, कतरा भी सुकून उसके पास आराम का, सामान बहुत है महफ़िलो में नाचता, फिरता ये आदमी उसके अन्दर गहरा, सुनसान बहुत है गुमशुदा ये आदमी, अपनी तलाश मेअपनी हि पहचान से, अनजान बहुत है  नहीं पहचाना ख़ुद को, जब आईना देखा मगर उसकी लोगो में, पहचान बहुत हैं  अपनी ही नजरों में, गिरता ये आदमी मगर उसकी ऊची, ऊड़ान बहुत है  आदमी क़ो हासिल नहीं, इक टुकड़ा जहाँयु तों कहने को यहां, आसमान बहुत हैं दो गज जमीन भी ना, कामिल हो जिसे उसके अन्दर बैठा, शमशान बहुत है धोखा देते हैं अपने, ही जहां हर कदम गैरों ने किए हम पर, अहसान बहुत है  दोस्तों ने गर्दीशो में भी साथ ना छोड़ा हमें अपने दोस्तों पे, गुमान बहुत है  थका हारा आदमी, कब तक निभाएगाउसे टूटे रिश्तो की, थकान बहुत है  जहा हर कोई ख़ुद को, अपना ख़ुदा माने ऐसे गलियों में घूमते, भगवान बहुत है  दुसरो की कब्र पे, अपना मकां बनातेऐसे शहर में रहते, हैवान बहुत है  जिसके अंदर का आदमी, घुट के मर जाएअपनी ही रूह से वो, अनजान बहुत है गरीबो का लहूँ से, अपनी जमीं सींचते ऐसे इस शहर मे, धनवान बहुत है  खून के रिश्ते भी जहा, दूरियो बन जाये ‘राजा’ ऐसे रिश्तो से, परेशान बहुत है

ज़िन्दगी आराम का, सामान बन के रह  गयीआरजू इक घर की थी, मकान बन के रह गयी उड़ते थे खुले आसमां, जब पँख पखेरू ना थे पँख आए तो पिंजरे की, उड़ान बन के रह गयी  करनी थी अता नमाज, हरेक शक्श के वास्ते पढ़ी नमाज़ तो नमाज़, अज़ान बन के रह गयी इक वो भी ज़मान था, जब रास्ते कम ना थेआज इक बंद गली का, मकान बन के रह गयी जिंदगी तूने जानने के, मौके तो बहोत दिएहममे ही कमी थी जो, अंज़ान बन के रह गयी कोशिशे तो बहोत की, कि दुनियादारी सीख लें जिंदगी है कि हमारी नादान बनके रह् गई  सपने भी टूटे मगर, हमने कभी सौदा ना कियाआज टूटे सपनो की, दूकान बन के रह गयी सुनने थे किस्से हमने, सब तेरी हरजाई के तू तो है कि गूंगे की, जुबान बन के रह गयी हौसले बुलंद इतने की, तारे भी तोड़ लाएंगेआज ये बढ़ती उम्र की, थकान बन के  रह गयी ये ताकत-ए-मुश्ताक, हममे भी गज़ब की थीवक़्त ऐसा बदला क़ी, बेजान बन के रह गयी. निशानेबाजी इस कदर, की आसमां भी भेद देआज ये बिना तीर के, कमान  बन के रह गयी कटे हाथ उनके जिसने, भी बनाया ताजमहलमोहब्बत भी इक जुल्म-ए-दास्तां बन के रह गयी  जानते थे तुझे जिंदगी, हम बहुत अच्छी तरहतूने नज़रे यु पलटी कि अनजान बन के रह गयी ज़िन्दगी हमारी किसी, गुलिस्तां से कम ना थीचमन ऐसा उजड़ा की, शमशान बन के रह गयी हम भी किसी सियासत के, हुकमन हुआ करते थेआज ये गुज़रे वक़्त के, निशान बन के रह गयी

बहुत गुनाह किए हमने
बहुत आँसू पिए हमने

 

ज़िन्दगी यूँ ही नहीं कटी
बहुत अफ़साने जिए हमने

 

बेशुमार कीमत चुकायी है
दर्द गहरे लिए हमने

 

कौन किसका साथी है
ज़ख़्म ख़ुद ही सिए हमने

 

किसने दिया कितना दर्द
कहाँ हिसाब किए हमने

 

कुछ क़र्ज़ चुकाने के लिए
सपने सब बेच दिए हमने

 

तुम्हीं क़ातिल तुम्हीं मुन्सिफ़
फैसले कबूल किए हमने

 

अधूरे ख्वाब कहाँ पुरे हुए
सूली सब भेट किए हमने

 

आत्म मंथन के जहर के
घड़े सब पी लिए हमने

 

कुछ रिश्ते बचाने के लिए
गुनाह सब सर लिए हमने

आखिरी कदम तो साथ दो
तन्हा सफऱ ही किए हमने

 

‘राजा’ तू कहाँ का पैगंबर
गुनाह सब माफ़ किए हमने

 

**अफ़साने-  कहानी। उपन्यास।

**मुन्सिफ़- न्याय करनेवाला।

**आत्म-मंथन- विश्लेषण करना।

क्यूँ मोहब्बत में हकीकत ढूंढते हैं लोग कितने नादां है यारों, मेरे शहर के लोग हर वक़्त जीने के बहाने, बेमाने लगते हैक्यूँ सागर में नहीं डूबते, मेरे शहर के लोग  रात भर करवटे बदलते, ये थके हारे से लोग रोज़ इक नई दौड़ दौड़ते, मेरे शहर के लोग हर कोई दौड़ रहा है ना जाने किस तालाश मेंथोड़ा ठहर क्यूँ नहीं जाते, मेरे शहर के लोग यारा की ज़ुल्फो-ए-साए में ये, ज़िन्दगी गुज़ार दोक्यूँ घर पत्थरों का है ढूँढते, मेरे शहर के लोग मुहँब्बत की दुनिया है, इबादत की दुनियाँक्यूँ दरो यार नहीं चूमते, मेरे शहर के लोग गर मुहँब्बत इक नशा है, तो ये नशा ही सही क्यूँ नशे में नही झूमते, मेरे शहर के लोग खाली प्याला हाथ में और दिल भरा हुआ क्यूँ राज-ए-दिल नहीं खोलते, मेरे शहर के लोग    तन्हा इतने कि अपनी ही परछाई साथ ना चलेतन्हा ही जिंदगी से झूझते, मेरे शहर के लोग रिश्तो क़ो जोड़ने की हर, नाकाम कोशिश मेंलम्हा-लम्हा है टूटते, मेरे शहर के लोग अपनो को देखते ही ये नज़रे चुराने लगते हाले-दिल तक नहीं पूछते, मेरे शहर के लोग मुफलिसी मे अपना साया भी साथ छोड़ देता है दौलत वालों को है पूजते, मेरे शहर के लोग  पिछे छुट जाने वालों का कोई इंतज़ार नहीं करता कुछ देर भी नहीं रुकते, मेरे शहर के लोग गिर जाने वालों को भी यहां कोई नहीं उठाताउसे रोन्द कर है दौड़ते, मेरे शहर के लोग दूसरों का महल देख ‘राजा’ झूठी शान में,क्यूँ घर अपना है फूंकते मेरे शहर के लोग

कोई बस्ती तो होगी, जहाँ लोग दींवाने होंगे
मूहब्बते फ़िज़ा में होगी, सब मस्ताने होंगे

ना वस्ल-ए-खौफ़होगा, ना दूरिया कोई होंगी
रोज दीदार-ए-यार होगा रोज अफ़साने होंगे

ना कोई खुदी में होगा, ना याद उनकी आयेगी
ना दर्द दबाने होंगे, ना आंसू बहाने होंगे

भँवरे गुलो पे होंगे, और वो हमारे पास
शाँम ढले घर जाने के, ना कोई बहाने होंगे

ना दर्दे ज़ँफा होगा, ना शामे गम होगा
ना कोई करार होगा, ना वादे निभाने होंगे

हर इक पर चड़ी होगी, मुहब्बत की खुमारी
कुछ ऐसा करना होगा सब, दर्द भुलाने होंगे

दीवानो की ऐसी बस्ती, कभी तो बसेगी
अंज़ानो की दुनीया मे, कुछ दोस्त बनाने होंगे

 

**ज़ँफा- अत्याचार ज़ुल्म अन्याय पूर्ण कार्य।

कुछ ही लोग होते हैं अपने दिल के नवाब

बाकी तो सब करते हैं दुनिया का हिसाब

 

दोस्ती में जो अपने ख़ुदा को भुला दे

वही दोस्ती के काबिल होते हैं जनाब

 

चुप रहना ही बेहतर है जहां दोस्ती ना हो

अजनबियों को देते नहीं हम कोई जवाब

 

कोई पर्दा नहीं होता दोस्त और ख़ुदा से

ना होता है किसी चेहरे पे कोई नक़ाब

 

रूठने मनाने कि कोई दरकार नहीं होती

दोस्ती में होता है विश्वास बेहिसाब

 

दोस्ती किसी ओहदे की मोहताज नहीं होती

ना इसमें कोई रंक है ना है कोई नवाब

 

जिससे बात करने को कभी सोचना ना पड़े

उस दोस्त को हम करते हैं दिल से आदाब

 

कहता है अपना दोस्त जिसे ‘राजा’ एक बार

उसके आगे फीका है दुनिया का हर शबाब

कोई मुझको मेरी खता तो बता दो फिर तुम मुझे जो भी चाहे सजा दो  शिकवा ना करेंगे तुमसे कभी हमफिर चाहे तुम मेरी हस्ती मिटा दो ख़ुदा माफ करे नादानियाँ तुम्हारी चाहे किले ठोक मुझे सूली चढ़ा दो प्यार में उसके मैं खुल कर नाचूगा चाहे तुम मुझे प्याला जहर का पीला दो  मोहब्बत गुनाह हैं गर ये सोचते हो मुझको दीवारों में जिन्दा चिनवा दो  ना छोड़ेगे कभी हम अपनी दीवानगीचाहे तुम मुझे पत्थरो से मरवा दो चीनाब तो हम पार करके ही रहेंगे चाहे तुम मुझे कच्चा घड़ा ही ला दो

ना ज़फा में तड़पे, ना वफ़ा में मुस्कुराए

ऐसी भी ज़िन्दगी, क्या ज़िन्दगी कहलाए

 

मोहब्बत की बारिश, में जो भीगी न हो

वो ज़िन्दगी भी, अधूरी रह जाए

 

बाग़-बाग़ हंसना, कभी दरिया-दरिया रोना

ये निशानियां ही, तो दीवानगी कहलाये

 

मिलने कि तड़प, कभी दुनिया का डर

ये भी न छूट पाए, वो भी न छूट पाए

 

मोहब्बत के मारों पे, सितम तो यही है

वो मिलते भी हैं, पर मिल न पाए

 

मोहब्बत-मोहब्बत, मोहब्बत-मोहब्बत

हम ही नहीं समझे, तो कैसे समझाएं

दूर से पूछोगे हाल, तो अच्छा ही बताएँगेआओगे थोड़ा पास, तो दिल खोल के दिखाएँगे नज़रो से करोगे सवाल, तो हर ज्वाब सुनाएंगे बनोगे मेरे हमराज, तो उम्र भर साथ निभाएँग कभी होगे हमसे नाराज, तो हम ही मनाएँगेगाओगे हमारे साथ, तो रोज महफ़िल जमाएँगे कुछ पल भी रहो साथ, तो पैमाने छलकाएगेइक वादा कर दो आज, की हम वफ़ा निभाएँगे  जाओगे हमसे दूर, तो बहुत याद आएँगे रहोगे हमारे साथ, तो कभी ना छोड़ पाएँगे छू लोगे गर साँसों से, तो ख़ुशबुएँ महकाएँगेथोड़ा भी कर लो प्यार, तो मर ही जाएँगे

कुछ गम नहीं जो मौत गले लगा ले

गर इक घड़ी भी मुझे अपना बना ले

 

जल सकता हूँ मैं जिंदा भी चिता पे

गर तू मेरी राख मांग में सजा ले

 

दफ़्न हो जाऊं उफ़ तक न निकलेगी

गर तू मेरी कब्र आंगन में बना ले

 

रात भर दीये की लौ पे तप सकता हूँ

गर तू काजल बना आँखों में बसा ले

 

दोनों जहां की बदनसीबी अपने नाम लिख लूं

गर मोर पंख बन मुझे तू लेखनी बना ले

 

‘राजा’ से रंक बनने में भी रंज नहीं

गर ये रंक तुझको ही भिक्षा में पा ले

 

**रंक- ग़रीब दरिद्र।

हमने इक शाम सुर्ख फूलों से सजायी है

और तुमने हो कि ना आने की कसम खायी है

 

दुआ होगी कबूल मेरी ये जानता हूँ मैं

हमने इक शमा तेरे हि दर पे जलायी है

 

जलेगा उम्मीद-ए-चिराग मेरी सांसों तक

हमने यही शर्त तूफ़ानों से लगाई है

 

बुतपरस्ती का इल्ज़ाम लगाते हैं लोग मुझपे

हमने तेरी मूरत जो इस दिल में बसायी है

 

समुन्दर कई पिए पर मन प्यासा ही रहा

हमने अपनी प्यास अंगारों से बुझायी है

 

जाते हुए उस दिन तेरा मुड़मुड़ के देखना

तूने इक उम्मीद इस दिल मैं जगायी है

 

तू मेरा दोस्त है हमदर्द है या हमसाया

हमने इस दिल में तेरी हर जगह बनाई है

 

ये मेरा दिल है या कोई बंद दरवाजा

‘राजा’ ने हर बात इस दिल में छुपाई है

तेरे कदमो में मेरा ये सर होगा
कहा ऐसा मेरा ये मुक्द्दर होगा

 

तू तसस्वुर है मेरे ही खयालो का
क्या तेरा साथ कभी मयस्सर होगा

भटकता हूँ रात भर मैं यु ही आवारा
कब जुल्फो-ए-साये में अपना घर होगा

 

तेरे साथ चलता हूँ, पर एहसास गुम है
कब खुदा मेरा मुझपे करमगर होगा

 

मुंतज़िर हुँ दीदार-ए-यार मुदत्तो से
कब रूबरू मुझसे मेरा रहबर होगा

 

हाशियों में सिमट के, ज़िन्दगी नहीं कटती
कब इन बाँहों में मेरा दिलबर होगा

 

तरसा हूँ बून्द-बून्द में तेरी उल्फत को
कब खुले आसमां तले समंदर होगा

 

**तस्सवुर- विचार; ख़याल; ध्यान।

**करमगर- असर करनेवाला प्रभावकर।

**मुंतज़िर- प्रतीक्षारत।

चाँद से सूरज से जिससे भी यारी रखिएबस इस दिल में थोड़ी जगह हमारी रखिए जानते है हम कि गुल किन क़िताबों में हैं  आप तो बस अपनी तफ़्तीश जारी रखिए मुफ़लिसि में जेबें भी फट जाया करती हैआप इनमे कभी थोड़ी, तो रेज़गारी रखिए समझा नहीं सकते तुम, हमें अपनी दलीलों से आप तों बस अपनी तफ्तीश जारी रखिए आईने के सामने हम से ही करोगे बातेंइन सुरमई आँखों में तस्वीर हमारी रखिए   बेखुदी में क्या मज़ा है जल्द जान जाओगे बस अपने दिल में थोड़ी बेकरारी रखिए  खुशबु साँसों में होंगी महक फिज़ाओ में अपने दिल में इक फूलो कि क्यारी रखिए  सब शिकवे भूला कर हम, तुम्हें गले लगा लेगे  आप अपने घर पे भी, कभी इफ़तारी रखिए