क्या तुमने कभी देखा है
किसी मर्द का चेहरा
आँसुओं में डूबा हुआ
नहीं देखा ना!
अरे वो मर्द ही क्या
जिसका चेहरा
आँसुओं में डूब जाए
या जिसकी आँख से
एक भी आँसू निकले
हम तो दूसरों का चेहरा
आँसुओं में डुबोने वालों को
मर्द कहते हैं,
चाहे वो पत्नी को
घर से निकाल देने वाला
सतयुग का राम हो
या उसका व्यापार करने वाला
कलयुग का आदमी
मगर ठीक विपरीत
मैं अपना चेहरा
आँसुओं में डुबोता हूँ
कभी अपने लिए
कभी औरों के लिए
मगर जब-जब मेरा चेहरा
आँसुओं में डूबता है
तब-तब मेरे चेहरे से
एक पुराना, सड़ा-गला
गर्द भरा चेहरा झड़ता है
और मुझे
एक नये सूर्योदय का
आभास होता है
अब आप मुझे मर्द मानो
या ना मानो
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं सूर्योदय देखता हूँ
देखता रहूँगा
अपना चेहरा आँसुओं में डुबोता हूँ
डुबोता रहूँगा
कभी अपने लिए
कभी औरों के लिए
क्यूँकि मैं जानता हूँ
कि मैं सतयुग का राम तो हूँ नहीं
और कलयुग का आदमी
बन नहीं पा रहा हूँ…