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जो कल था अब है नहीं, जो अब है कल नाहीं

सब जग नश्वर भयो, चिंता करे तू काही…


चंचल मन बालक भयो, बहुतो नाच नचाए
जब मन समता भही, अटल ध्रुव हो जाए…


तिनका तिनका जोड़ के गठरिया कई बनाई
सभी छोड़ के चल दिये, जीवन व्यर्थ गवाई…


कर्म कांड बहुतो किये, कोइनो काम ना आए
मन की गांठे खोल दे, धर्म मार्ग मिल जाए…


मैं मैं करता जग मुआ, मैं ना जाणयो कोए
जब मैं जानत भयो, जगत तमाशा होए…


बाहर अंदर एक है, जान सके तो जान
कण-कण मे जब रब दिखे, होए बौद्ध ज्ञान…


अंदर तेरे राम है, तुझको नजर ना आए
मन की गांठे खोल दे, जग रोशन हो जाए…


राग-द्वेष भय एक है, सब जग लेयो फसाए
समता मन कीजिये, जीवन सरल हो जाए…


दया धर्म का मूल है, करुणा दियो जगाए,
जिस मन करुणा भही, धर्मवान बन जाए…


दया धर्म का मूल है, करुणा दियो जगाए,
जिस मन करुणा नहीं, निरा ठूठ रह जाए…


दुनियां खेल तमाशा हैं

चारो तरफ निराशा हैं

नानक दुःखिया सब संसार

इक़ तेरा नाम ही आशा हैं..



ज़िन्दगी तू क्यूँ रेत बन गयीमैं जब-जब तुझे अपनी मुठ्ठी में भरकर मनचाहा आकार देना चाहता हूंतू रीत जाती है क्या मेरा तुझपर इतना भी अधिकार नहींकी तुझे जिसे मैंने जन्म से लेकर अब तक अपने कमजोर कांधो पर ढोया है उसे एक बारसिर्फ एक बार अपने मनचाहे आकार में डाल सकू