बेखयाली  में बरहा

बेखयाली  में बरहा

बेख्याँली में बरहा, वो ये भूल जाते हैं
नशेमन हो शबाब तो, रिंदे लूट जाते है
 
मोहँब्बत नहीं आसान, ये तो वो शे हैं की 
गर न मिले तो सरफ़राज भी टूट जाते हैं
 
जब भी होता है जिक्र, तिरी आँशनाई का
ख्याँलो में तेरे हम, अकसर डूब जाते हैं
 
मनाने से मेरे जो लज्ज़त, आती है आपको 
तभी बात-बात पे आप, हमसे रूठ जाते है
 
न अंगडाई लो न हमें, देखो तिरछी नज़र से
अच्छे-अच्छो के यहां, ईमान, यहां टूट जाते हैं
 
मुद्दतो बाद आज नज़रे, करमगर हुई उनकी
रूकता नहीं सैलाब, ये आँसू फूट जाते हैं
 
बहुत नकाब पहने है, लोगो ने चेहरो पे 
अपने ही चेहरे को, अकसर भूल जाते है 
 
कौन कब बदल जाए, किसको पता है यारों 
सदियों पुराने साथ भी, पल मे टूट जाते है
 
भीड बहुत है रास्तो में, जरा सम्भलकर ‘राजा’
कसकर पकडे हाथ भी, अकसर छूट जाते हैं
 

**रिंदे – शराब और कबाब का शौकीन

**सरफ़राज – वियक्ति जिसपे खुदा मेहरबान हो 

**आशनाई – प्रेम, दोस्ती।

**लज्ज़त – लज़ीज़ होने का भाव। ज़ायका स्वाद।

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