बेख़याली में बरहा वो ये भूल जाते हैं
नशेमन हो शबाब तो रिंदे लूट जाते हैं
मोहब्बत नहीं आसान ये तो वो शै है
गर न मिले तो सरफ़राज भी टूट जाते हैं
जब भी होता है ज़िक्र तेरी आँशनाई का
ख़्यालों में तेरे हम अक़्सर डूब जाते हैं
मनाने से मेरे जो लज्ज़त आती है उनको
तभी बात-बात पे वो हमसे रूठ जाते हैं
न अंगड़ाई लो न देखो तिरछी नज़र से तुम
अच्छों-अच्छों के ईमान यहाँ टूट जाते हैं
मुद्दतों बाद नज़रे करमगर हुई उनकी
रुकता नहीं सैलाब ये आँसू फूट जाते हैं
बहुत नक़ाब पहने हैं लोगों ने यहाँ पर
अपने ही चेहरे की पहचान भूल जाते हैं
कौन कब बदल जाए किसको पता है यारों
सदियों पुराने रिश्ते भी पल में टूट जाते हैं
भीड़ बहुत है रास्तों में सम्भलकर ‘राजा’
कसकर पकड़े हाथ भी अक़्सर छूट जाते हैं
G006
khui