मुहब्बत में जब रब की ईनायत हो जाती है
जो भी वो बोले वो ही रूबायत हो जाती है
तरसे हो इक कतरा और दरीया मिल जाएं
मुक़ददर कि कभी ऐसी कवायत हो जाती है
अतिश-ए-इश्क़ सुलग जाएं तो बुजता नहीं
रब से मेरी बरहा शिकायत हो जाती है
उन्हे सोच कर ना सौचु किसी और को
उनकी मुझको ऐसी हिदायत हो जाती है
तुम न हो तो तुम्हारे अक्स से ही प्यार करू
हमसे भी कभी ऐसी हिमायत हो जाती है
*वस्ल-ए-इनायत- कामिल की कृपा
*रुबाइयत- शबद-कुरान के दोहे
*इनायत – कृपा
*हिदायत- निर्देश
*हिमायत- साहस
*रिवायत- रीति रिवाज
*कवायत- हो रहा
G023
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