कोई बस्ती तो होगी जहाँ लोग दीवाने होंगे
ख़ुशबुएँ फ़िज़ा में होंगी और सब मस्ताने होंगे
ना वस्ल-ए-ख़ौफ़ होगा ना कोई दूरियाँ होंगी
रोज़ दीदार-ए-यार होगा, रोज़ अफ़साने होंगे
ना कोई ख़ुदी में होगा ना यादें सताएँगी
ना दर्द दबाने होंगे ना आँसू बहाने होंगे
भँवरे गुलों पे होंगे और वो हमारे पहलू में
शाम ढले लौट जाने के ना कोई बहाने होंगे
ना दर्द-ए-ज़फ़ा होगा ना कोई करार होगा
कुछ ऐसा करना होगा सब दर्द भुलाने होंगे
दीवानों की ऐसी बस्ती किसी दिन तो बसेगी
अंज़ानों की दुनिया में कुछ दोस्त बनाने होंगे
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