क्यूँ इन्तज़ार करता है नासमझ क्यूँ राह तकता है नासमझ किसी का बेकरारी से यहाँ कोई नहीं आयेगा तुझे श्रद्धा सुमन अर्पित करने कोई नहीं जलायेगा तेरी याद में एक टिमटिमाता सा दीया कोई नहीं बहायेगा तेरे लिये चन्द आँसुंओं के कतरे
कोई नहीं ताकेगा राह तेरी प्यार में क्यूँ राह तकता है नासमझ किसी का बेकरारी से क्यूँ इन्तज़ार करता है नासमझ किसी का बेकरारी से यहाँ इन्तज़ार का अन्त आँखे खुली हुई मौत है…