हर चमन में, इश्क-ए-गुल, कहाँ खिलता है
जहाँ उम्मीद हो इसकी, कहाँ मिलता है
क्यूँ डरें हम इश्क़ के अजब इम्तहानों से
बिना तपे आग में सोना कहाँ खिलता है
जिसने ना माना इश्क़ को अपना खुदा यारो
वो ज़िन्दगी भर यहां खाली हाथ मलता हैं
ठुकराया जिसने भी इश्क अपने यार का
वो गीली लकड़ी सा धुआँ-धुआँ बलता है
इश्क़ में जरुरी है ख़ालिश दोनो तरफ बराबर
बिना शमा जले परवाना कहाँ जलता है
इश्क़ इनायत है, मिलती है तकदीर वालो को
रब तो सिर्फ इश्क वालों को ही मिलता है
इश्क़ के बाजार में चलती नहीं कोई दौलत
वहाँ सिर्फ इश्क़ का सिक्का चलता है
इश्क़ फकीरी है और इश्क़ ही बादशाही
इश्क़-ए-जहाँ में कोई रुतबा नहो चलता है
होंगे रहनुमा जहाँ मे बेशुमार तुम्हारे
इश्क़ हमारा रब कि रहनुमाई मे पलता है
G021
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