Posted inGhazal/Nazm हर आदमी अकेला Posted by Bhuppi Raja February 7, 20012 हर आदमी अकेला हर आदमी अकेला परेशान बहुत हैइस शहर में दोस्त कम अंजान बहुत हैं आदमी को हासिल नहीं इक कतरा सुकूंउसके पास आराम का सामान बहुत है महफिलों में नाचता-फिरता ये आदमीउसके अंदर गहरा सुनसान बहुत है नहीं पहचाना ख़ुद को जब आईना देखामगर उसकी लोगो में पहचान बहुत है अपनी ही नजरों में गिरता ये आदमीमगर उसकी ऊंची उड़ान बहुत है गुमशुदा ये आदमी अपनी तलाश मेंअपनी ही पहचान से अनजान बहुत है आदमी क़ो कामिल नहीं इक टुकड़ा जहाँयूं तो कहने को आसमान बहुत हैG002 Post navigation Previous Post ज़िन्दगी आराम का सामानNext Postसहरा में मिराज दिखाकर
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