अश्क़ बहते नहीं अब तेरी बेफावाई में
हम तो खुश रहते हैं उस रब की रज़ाई में
दूर रहकर भी हम सुकूँ तालाश लेते हैं
ख़लिश उठती नहीं अब तेरी जुदाई में
यक़ी आता नहीं तुमको तो छोड़ दो हमको
कुछ और कहना नहीं हमें अपनी सफाई में
तुम सुकूँ से जिओ हम तरसें कतरा सुकूँ को
हरगिज़ मंज़ूर नहीं यूँ जीना आशनाई में
हम तुम्हें सोचें, तुम सोचो किसी और को
ऐसे भी क़ोई जीता हैं इतनी बेहयाई में
लेते हैं लोग मज़ा अब मेरी बेबाकी का
नाम जब भी हम लेते है तेरा दुहाई में
हम भी सोचें क्यों अच्छे न हुवे अब तक
कुछ तो मिलाया है तुमने मेरी दवाई में
जब तलक ताल ना मिले नहीं नाचते हम
उम्र बेताला नाचे है हम तेरी तिहाई में
धोखे खाना कोई दुश्वार नहीं है हमको
ना होंगे खाक हम अब तेरी हर्जाई में
लुभाता नहीं अब हमें दिलकशों का हज़ूम
कुछ नहीं रखा ‘राजा’ पत्थरों से दिल लगाई में
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