आज का दिन फिर कहानी हो गया
आना उनका बेईमानी हो गया
न आये न बैठे न दिल की बात की
आना उनका मेहरबानी हो गया
सुनानी थी उन्हें अपने दिल की दास्तां
ये दिल बेचारा बेजुबानी हो गया
यूँ पराया बनके भी कोई आता है
वक़्त सारा मेजबानी हो गया
अफ़साना बन गयी है ज़िन्दगी
प्यार मेरा किस्से-कहानी हो गया
आँखों में बसा लो मुझे काजल बना
जिस्म मेरा सुरमे-दानी हो गया
ख़ुद को समझें है वली किस बात पे
यार मेरा बदगुमानी हो गया
दिल क्यूँ मेरा अब कही रुकता नहीं
ये भी तुम सा आना-जानी हो गया
दिल क्यूँ मेरा अब मेरे बस में नहीं
दिल ये मेरा ‘राजा’ जानी हो गया
*मेजबानी- मेहमानदारी अतिथि सत्कार।
*बदगुमानी- कुधारणा। शक।
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