Posted inGhazal/Nazm मुहब्बत में जब Posted by Bhuppi Raja January 11, 2001No Comments मुहब्बत में जब मुहब्बत में जब रब की इनायत हो जाती हैजो भी वो बोलें वही रुबायत हो जाती है तरसे हो इक कतरा और मिल जाए दरियातक़दीर में कभी ऐसी कवायत हो जाती है आतिश-ए-इश्क़ सुलग जाए तो बुझता नहींरब से मेरी बरहा शिकायत हो जाती है उन्हें सोच कर मैं न सोचूँ किसी और कोउनकी मुझे ऐसी भी हिदायत हो जाती है फ़िज़ाओं में जब तेरी सदा गूंज उठती हैख़ामोश दिलों में भी रवायत हो जाती है लबों पे दुआ निकले तो असर होता हैबंदी दुआ से भी रिहायत हो जाती है तुम न हो तो तुम्हारे अक्स से ही प्यार करूँ‘राजा’ से भी ऐसी हिमायत हो जाती हैG023 Post navigation Previous Post आज फिर हमसेNext Postवो न देखते