आज फिर हमसे परदादारी हैं
इतना ज़ुल्म क्याँ खता हमारी हैं
चाँद कब बादलों से निकलेगा
इन्तज़ारे-इन्तहाँ बेकरारी हैं
कुछ यादें दबी हैं दिल में हमारे
यादों संग हमारी पुरानी यारी हैं
दूरीयाँ कितनी भी हो दरमयाँ
वो ज़िन्दगी आज भी हमारी हैं
मदहोशीयां फिज़ा में छायी हैं
आज निगाहें उनकी आँबकारी हैं
हर तरफ छाही है काली घटाए
आज फि उनकी ज़ुल्फकारी हैं
आज वो हमको गले लगा लेगे
आज उनके यहा ईफ़तारी हैं
महफिल में कब परदा उठेगा
इक-इक लम्हा हम पे भारी हैं
G022
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