तू सुकूं है

तू सुकूं है तो ये शरर क्यूँ है

तू नहीं साथ तो ये सफ़र क्यूँ है

 

जिसे देखते ही कयामत आ जाये

मेरा यार इतना भी ग़दर क्यूँ है

 

कुछ तो टूटा है जो चुप बैठे हो

टूटा नहीं दिल तो चश्मे तर क्यूँ है

 

दर्द मेरा चुप रहकर क्यूँ पीता है

मेरी हर आह तेरी नज़र क्यूँ है

 

मेरे लिए तूने बहुत दुआएं मांगी

तुझे इतनी मेरी भी फिकर क्यूँ है

 

चाहता है मुझे तो खुलकर बता

तेरी चाहत में गर-मगर क्यूँ है

 

इश्क़ कामिल होना अभी बाक़ी है

कामिल है तो अपनी भी ख़बर क्यूँ है

 

मेरी तकदीर में गर तू नहीं तो

तू किसी और का मुकद्दर क्यूँ है

 

जानता हूँ मैं तू मेरा ख़ुदा है

फिर ये दिल भटकता दर-ब-दर क्यूँ है

 

*शरर-‘चिंगारी’

*कामिल-मुक़म्मल

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