Posted inGhazal/Nazm शाम-ए-सफर Posted by Bhuppi Raja January 22, 2001No Comments शाम-ए-सफर शाम-ए-सफर में गर हमनशी का साया भी होज़िन्दगी यूं ही सफ़र में गुज़ार दूं मैं किसे फिक़्र मंज़िल मिले ना मिलेचंद लम्हे तेरे संग गुज़ार लूँ मैं दोनों जहाँ की जन्नत है तेरे कदमों मेंइस जन्नत पे हर जन्नत निसार दू मैं भूल कर भी तू मुझें भुला न सकेआ तुझे आज इतना प्यार दूं मैं हर अलफ़ाज़ तेरा खुदा का नगमा हैइन नगमो पे ख़ुदाई भी वार दूं मैं तेरा दीदार करमगर हो ना हो ‘राजा’तेरा तसव्वुर ही साँसो में उतार लूं मैंG041 Post navigation Previous Post तुम मुझे जीने कीNext Postतुम ख़ुद को