प्रतिबिम्ब

प्रतिबिम्ब

जब कभी भी
तुम्हारी आँखों में
मैं अपना प्रतिबिम्ब देखता हूँ
पहचानने की कोशिश करता हूँ
क्या ये मेरा ही है

 

लेकिन मैं
कोशिश ही करता रहता हूँ
और वह
अपना आकार बदल देता है

 

कोशिशें
एक बार फिर
नाकामयाब हो जाती है
और मैं बेबस, लाचार

 

तुम एक मूक दर्शक की भांति
मेरी इस बेबसी पर
मुस्कुरा भर देती हो

 

और मैं
जुट जाता हूँ
एक बार फिर
अपना प्रतिबिम्ब पहचानने…

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