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ना ज़फा में तड़पे

न ज़फ़ा में तड़पे, न वफ़ा में मुस्कुराए

ऐसी भी ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी कहलाए

 

मोहब्बत की बारिश में जो भीगी न हो कभी

ऐसी भी ज़िन्दगी अधूरी ही रह जाए

 

कभी बाग़-बाग़ हँसना, कभी दरिया-दरिया रोना

ये ही निशानियाँ तो मोहब्बत कहलाए

 

कभी मिलने की तड़प, कभी दुनिया का डर

ये भी न छूट पाए, वो भी न छूट पाए

 

मोहब्बत के मारों पे सितम तो यही है

वो मिलते तो हैं, पर कभी मिल न पाए

 

मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत

हम ही नहीं समझे तो कैसे समझाए

G015

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