Posted inGhazal/Nazm ना ज़फा में तड़पे Posted by Bhuppi Raja January 4, 2001No Comments ना ज़फा में तड़पे न ज़फ़ा में तड़पे, न वफ़ा में मुस्कुराएऐसी भी ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी कहलाए मोहब्बत की बारिश में जो भीगी न हो कभीऐसी भी ज़िन्दगी अधूरी ही रह जाए कभी बाग़-बाग़ हँसना, कभी दरिया-दरिया रोनाये ही निशानियाँ तो मोहब्बत कहलाए कभी मिलने की तड़प, कभी दुनिया का डरये भी न छूट पाए, वो भी न छूट पाए मोहब्बत के मारों पे सितम तो यही हैवो मिलते तो हैं, पर कभी मिल न पाए मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बत, मोहब्बतहम ही नहीं समझे तो कैसे समझाएG015 Post navigation Previous Post क्यों तुम मुझमेंNext Postकुछ गम नहीं