Posted inGhazal/Nazm ना कोई आँख Posted by Bhuppi Raja February 16, 2001No Comments ना कोई आँख ना कोई आँख नम हो ना वफा ही कम होकभी किसी से दूर उसका सनम हो ऐसी इक दुनिया बना दे मेरे मोलाजहाँ कभी किसी को ना कोई भी गम हो हर शख़्स में तेरी ही सूरत नज़र आएहम सब पे तेरा ही रहमो-करम हो दिलों में हमारे न पनपे मज़हबि सरहदेहर दिल में सिर्फ इंसानियत का जन्म हो कभी तो सब मज़हब एक सूरत में ढलेंकहीं किसी को ना कोई वहम हो मज़हबी जहालत को मिटा दे जहाँ सेरहे भरोसा ही बस ना कोइ भरम हो ‘राजा’ का मज़हब अगर हो तो बस यहीहर दिल का मज़हब इंसानियत धर्म होG052 Post navigation Previous Post जिंदगी मेरी रब कीNext Postकाश! मैं भी