अंदर और बाहर के प्रदूषण और शोर में काला धुँआ फेंकते विचारों के पीछे छिपे स्याह चेहरों में से अपना वर्तमान चेहरा ढूंढ पाना कितना मुश्किल होता है!
विचारों के तार जुड़ने के साथ हमारे भूतकाल का आईने के समान अनगिनत टुकड़ों में टूटना और हमारे चेहरे का उतने ही टुकड़ों में टूट जाना एवं प्रत्येक चेहरे के दानवी अट्टहासों के साथ उनके ज़ुल्म की अलग-अलग दास्तानो को बारम्बार सुनना कितना मुश्किल होता है!
गुनाहों की आंधी में उड़े भविष्य के कागज़ी टुकड़ों को आत्मा की टूटी बैसाखियाँ लिए मानवता के कटे हाथों से टुकड़ा-टुकड़ा समेट पाना
कितना मुश्किल होता है, सचमुच कितना मुश्किल होता है!…