Posted inKavita जिसकी राहों में कांटे हो Posted by Bhuppi Raja February 6, 2005No Comments जिसकी राहों में कांटे हो जिसकी राहों में कांटे होऔर राही भी अंधा होटूटी सांसो से कब तक चलेजो बिल्कुल अकेला हो उस इंसा की क्या नसीबीजो ख्वाबों में जीता होमन्जिल को भटकता होउसके साए से गुजरा हो हर सूरत फना हो गईहर सीरत धुआं हो गईअपना चेहरा जो छूने लगाआंखों में उंगलियां धस गई जमाने की लू जो चलीजिस्म पिघला दिल छू न सकीमांस बिन पिंजरे में दिल लिएराही फिर भी ये चलता चलेK040 ग़ज़ल/ नज़्म दोहे कोट्स Post navigation Previous Post नैना बरसत जाएNext Postवक़्त हर वक़्त का