फिर वही मुहब्बत, फिर वही तराना
ये आधी हक़ीक़त, ये आधा फ़साना
अकेले में मिलने के बहाने बनाना
और महफ़िल में हमसे नज़रें चुराना
दाँतों तले उनका पल्लू दबाकर
इशारो-इशारों से हमको बुलाना
परदे के पीछे से छुप-छुप के देखना
और होले से उनका परदा सरकाना
आईने में ख़ुद से नज़रें मिलाकर
शर्मा के अपनी नज़रें झुकाना
ख़्वाबों की इक महफ़िल सजाकर
बेख़ुदी में उनका गुनगुनाना
दिल के दर्द को सीने में दबाकर
आँखों में आँसू भर के मुस्कुराना
मुहब्बत में गिरना, गिर के फिर उठना
ज़माने का काम तो है ठोकर लगाना
बातों ही बातों में उनका रूठ जाना
अच्छा लगता है उन्हें मेरा मनाना
जवानी का आलम ये सदियों पुराना
सुनाता रहा है जिसे ये जमाना
ये तेरी कहानी, ये मेरी कहानी
बहुत पुराना है अपना याराना
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