आज फिर उनकी यादों का आना हुआ
आज फिर दिल को यूँ समझाना हुआ
हसरतें तो उठेंगी नादान दिल में
आज फिर हसरतों का दबाना हुआ
कभी भूल से तुम भी मिलने आ जाओ
बिछड़े हुए हमें तो इक ज़माना हुआ
दरवाज़े पे आकर न करो इंतज़ार
जब से गये हो, न कुण्डी लगाना हुआ
मिलने की कशिश होती तो मिल ही लेते
वस्ल-ए-ख़ौफ़ तो सब बहाना हुआ
जाते हुए तुम उस दिन कुछ तो कह देते
आपका चुप रहना भी इक फ़साना हुआ
हम तुम्हारे दिल के थे जितने क़रीब
क्या हुआ अचानक सब बेगाना हुआ
ज़ख़्म दबाते-दबाते नासूर न हो जाए
आज ज़ख़्मों का बाज़ार लगाना हुआ
तेरा वक़्त भी इक दिन ज़रूर आएगा
बार-बार दिल को यूँ बहलाना हुआ
जलेगा उम्मीद-ए-चराग़ा मेरे लहू से
आज फिर ख़ंजर दिल में खुबाना हुआ
गुनाह उम्र भर के वो माफ़ कर देगा
आज फिर मेरा उससे माफ़ीनामा हुआ
ज़ुबां पे मेरा नाम आते ही कुछ कह देते
दाँतों से होंठ दबाना दर्द छुपाना हुआ
जाते हुए तेरा मुझे मुड़ के देखना
इसी अदा पर तो ये दिल दीवाना हुआ
बहुत देर न हो जाए कहीं आते-आते
इक दिन ख़बर मिले ‘राजा’ चलाना हुआ
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