तेरे कदमो में मेरा ये सर होगा
कहा ऐसा मेरा ये मुक्द्दर होगा
तू तसस्वुर है मेरे ही खयालो का
क्या तेरा साथ कभी मयस्सर होगा
भटकता हूँ रात भर मैं यु ही आवारा
कब जुल्फो-ए-साये में अपना घर होगा
तेरे साथ चलता हूँ, पर एहसास गुम है
कब खुदा मेरा मुझपे करमगर होगा
मुंतज़िर हुँ दीदार-ए-यार मुदत्तो से
कब रूबरू मुझसे मेरा रहबर होगा
हाशियों में सिमट के, ज़िन्दगी नहीं कटती
कब इन बाँहों में मेरा दिलबर होगा
तरसा हूँ बून्द-बून्द में तेरी उल्फत को
कब खुले आसमां तले समंदर होगा
**तस्सवुर- विचार; ख़याल; ध्यान।
**करमगर- असर करनेवाला प्रभावकर।
**मुंतज़िर- प्रतीक्षारत।
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