ना ज़फा में तड़पे

ना ज़फा में तड़पे

ना ज़फा में तड़पे, ना वफ़ा में मुस्कुराए

ऐसी भी ज़िन्दगी, क्या ज़िन्दगी कहलाए

 

मोहब्बत की बारिश, में जो भीगी न हो

वो ज़िन्दगी भी, अधूरी रह जाए

 

बाग़-बाग़ हंसना, कभी दरिया-दरिया रोना

ये निशानियां ही, तो दीवानगी कहलाये

 

मिलने कि तड़प, कभी दुनिया का डर

ये भी न छूट पाए, वो भी न छूट पाए

 

मोहब्बत के मारों पे, सितम तो यही है

वो मिलते भी हैं, पर मिल न पाए

 

मोहब्बत-मोहब्बत, मोहब्बत-मोहब्बत

हम ही नहीं समझे, तो कैसे समझाएं

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