दिल को पत्थर भी कर लूं, तो भी क्या हो जायेगा
तेरी यादों का, क्या सिलसिला रुक जाएगा
शमा जलते ही तेरे, साये का चले आना
और मुझमें समा जाना, क्या ये भूल पाएगा
गम नहीं बांटे थे, हमने ज़िन्दगी थी बांट ली
फिर भी तेरा चले जाना, क्या वफ़ा कहलायेगा
मोहब्बत-ए-सुरूर, जो तुम्हारी आँखों में ख़ुमार था
गर वही ना रहा, तो और क्या रह जाएगा
कोशिशें जितनी भी कर लो, तुम मुस्कुराने की
गर हम ही ना रहे तो आँसू छलक ही जायेगा
G070
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