ना तुम्हारा दिन निकलेगा

न तुम्हारा दिन निकलेगा न हमारी रात होगी

न ज़िन्दगी में कोई जुम्म-ए-रात होगी

 

शाम-ए-सफ़र में जब भी तन्हा होंगे हम

ख़यालों- ख़यालों में दिल की बात होगी

 

किस-किस को सुनाएंगे अपना ये फ़साना

रोज अज़नबी चेहरों से मुलाकात होगी

 

ना कभी मिले हम ना बैठे न बात करें

ज़िन्दगी हम जियेंगे पर खैरात होगी

 

हसरतों पे क्या जोर वो तो उठेगी ही

पर न आँख नम होगी ना बरसात होगी

 

वस्ल-ए-खौफ दुनिया कब तक सहेंगे हम

कभी तो खत्म जहां से जहालत होगी

 

कितने भी सितम करले ये ज़माना हम पर

इक दिन तो इस जहां में कयामत की रात होगी

 

वस्ल-ए-ख़ौफ़ कुछ इस कदर हावी होगा

सिसकियाँ तो होगी पर ना आवाज़ होगी

G066

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