ना कोई आँख नम हो ना वफा ही कम हो
ना कभी दूर किसी से उसका सनम हो
ऐसी ही इक दुनिया बना दे या ए रब
जहां कभी न किसी को कोई गम हो
जहां जमीं-आसमां मिल रहे हो कहीं दूर
आँखों को कभी ना ऐसा भरम हो
हर सूरत में तेरी ही सूरत नज़र आए
हर किसी पे तेरा रहमो-करम हो
बेशर्मियाँ भी जहां सीखे शर्मो हया
चेहरे पे हिज़ाब आँखों में शरम हो
हमारे घरों में न हो हिन्दू-मुस्लिम पैदा
हर सिर्फ इंसानियत का जन्म हो
मज़हबी जहालत खत्म कर जहां से
हर इंसा का सिर्फ इंसानियत धरम हो
G052
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