आँखों में सेहरा लिए समंदर ढूँढते हैं
हौसले हमारे देखिए बवंडर ढूँढते हैं
लड़ जाये जो तूफ़ानों से सीना ताने
अपने अन्दर तो वो सिकन्दर ढूँढते हैं
हमसे ही आँख मिलाने का जो हौसला रखे
ज़माने में एक ऐसा धुरन्धर ढूँढते हैं
वो जिसे ना ढूँढ पाया कोई आज तक
ज़िद हमारी भी है एक मुक़द्दर ढूँढते हैं
जंगल में तो जंगल ही का कानून चलेगा
तुम रहो सलामत हम तो चलो शहर ढूँढते हैं
हम तो चले फिर पहाड़ों पे छुट्टियाँ मनाने
तुम तो जून मे तपो हम सितंबर ढूँढते हैं
इसे मैं क्या समझूँ की दोस्ती या दुश्मनी
दुआ होंठों पे है और ख़न्जर ढूँढते हैं
गुज़री है ता-उम्र सारी बेमतलब बातों में
जन्नत सँवारनी है कलन्दर ढूँढते हैं
एक दिन जरूर मिलेगा तुम्हें तुम्हारा ख़ुदा
उनक़ो मिलेगा जो अपने अन्दर ढूँढते हैं
*कलन्दर- सूफ़ी संत।
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